शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(र)-चलो बचाएं देश को !! ((रूपक-गीत) (१)रोगिणी इंसानियत बचाइये बचाइये!!
>> Friday, 31 August 2012 –
गीत (आव्हान-गीत)-एक रूपक
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइए !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
रोग 'काम-क्रोध ' का |
रोग 'प्रतिशोध ' का ||
रोग-'वैमनस्यता '-
रोग है 'अबोध ' का ||
घाव से भरा हुआ है तन-'हृदय के मोद ' का |
इसकी साँस घुट रही, बचाइये!बचाइये !!
इसकी 'आस 'लुट रही, बचाइये!बचाइये !!
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइये !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दिल में कितनी 'नफरतों की खाइयाँ ' बनीं हुई !
फ़र्क-भरी 'फ़ितरतों की खाइयाँ ' बनीं हुई !!
खून की प्यासी 'क़ुदरतों की खाइयाँ ' बनीं हुई !!!
'सभ्यताके मुखौटे ' पे 'झाइयाँ ' बनीं हुई !!!!
चीखती पुकारती 'भावना ' दुखी हुई -
इसके 'रूप के पराग-धूलि ' अब बिखर गयी -
इसे 'प्रेम-अमरफल 'का 'स्वरस ' पिलाइये !
करके कोई यत्न इसे कैसे भी जिलाइये !!
गिर चुकी,सहारा दे के अब इसे उठाइये !!!
रो चुकी है बहुत इसे ,और मत रुलाइये !!!!
'निराशा' में डूबी, इसे दिलासा दिलाइये !!!!
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइए !!१!!
इसे शौक चढ़ गया है,'सुखों की ही टोह ' का !
इसे रोग लग गया है,' हिंसक कु-द्रोह का !!
इसे दंश लग गया है 'कंचन के मोह ' का !!!
इसे 'ज्वर' चढ़ा है देखो,आज 'देश-द्रोह' का !!!!
बहुत 'ताप दे चुके हो, 'विष ' पिला पिला इसे -
पा के ' दर्द भरा ताप ' इसकी आँख झर गयी -
इसकी दशा देख कर के,इस पे तरस खाइये !
इसके लिए करुण बन के,मन में दया लाइये !!
'वासना' में इसे और अधिक मत जलाइये !!!
पी चुकी है 'ज़हर' बहुत, और मत पिलाइए !!
'तृष्णा का नाच ' अब तो इसे मत नचाइये !!!!
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइए !!२!!
हो गये हैं लोग आज देखो कितने बावले !
'ऐश' के लिए हैं कितने देखो ये उतावले !!
दूसरों के सुख को देख,देखो 'डाह'से जले !!
'प्रीति के शरीर ' पे हैं कितने 'छाले '-'आवले ' !!!
बुद्धि चेतना रहित कुन्ठ जैसी हो गयी -
' भावना की रागिनी 'देखिये तो मर गयी -
सोये हुये 'हृदय के तार ' को जगाइये !
सुन्न हुये 'ह्रदयों के तार ' को जगाइये !!
' मद ' में डूबे, सुप्त हुये 'प्यार ' को जगाइये !!!
'कुम्भकर्ण ' सी है इनकी 'नींद ' को भगाइये !!!!
' जागरण की प्रेरणा ' का खेल कुछ रचाइये !!!!
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइए !!३!!
'जीर्ण ज्वर ' की तरह लिया रूप 'वैर-भाव 'ने |
क्रूर रूप ले लिया है इनके हर स्वभाव ने ||
उजड़ते रहे हैं 'दृश्य ' सारे ही 'सुहावने ' ||
'प्रकृति ', के 'पंख ' रहे ', 'नोचते ' लुभावने ||||
बदलते समय की कितनी आँधियां यहाँ चलीं-
बदलते समय के साथ,' मन ' में 'रेत ' भर गयी-
' आत्म घात ' कर रहे हैं ये, इन्हें बताइये !
इनके ' दिल ' में ' करुण भाव के विटप ' उगाइये !!
' नासमझ ' हैं,इन्हें कुछ चिताइये !चिताइये !!!
इन्हें ' सत्य-ज्ञान-प्रेम का सुपथ ' सुझाइए !!!!
रूठ गयी, जतन कर के, हाँ इसे रिझाइये !!!!
रोगिणी 'इंसानियत' बचाइए !बचाइए !!४!!
bahut gehre bhav hain................