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घड़ी प्रीति की आयी है

अन्तर्जाल के मित्र!,
                  पर्वों के यथार्थ मूल्यों को खोते इस वित्तवादी  युग में राखी के उद्देश्य को समझाती शिवोमयी प्रसाद गुणीय शान्त रस की एक रचना 
प्रस्तुत है | --- 

  

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“ खुशियाँ तुमको मिलें हज़ारों,इसकी राम दुहाई है |

सावन के इस मास में देखो,घड़ी प्रीति कीआयी है||”

बड़े प्यार से,हाथ में भाई के राखी है बाँध रही |
एक बहिन उसके एवज में,नेग इस   तरह मांग रही ||-


“मुझे चाहिये इससे बढ़ कर कोई बड़ा इनाम नहीं |
“मेरे भैया,तुमने मुझसे जो राखी बंधवाई है |
इसकी लाज बचाने की सौगन्ध तुम्हीं ने खाई है ||१||
“यह सौगन्ध निभाने को तुम कोंई अच्छा काम करो |
प्यारेभैया,नेक नामियों में तुम ऊँचा नाम करो ||
“बिना भलाई के जो बीते,सुबह न हो, हो शाम नहीं |
“कुपथ छोड़ कर,यदि तुमने कुछ भली राह अपनाई है |
तब समझो,राखी की तुमने, भैया आन निभाई है ||२||
“समाज के हित जीना सीखो,’राष्ट्रवाद’ अपनाओ तुम |
उठो स्वयं,परिवार को अपने ऊँचा और उठाओ तुम ||
“ ‘मानवता’ की उड़ान वाली गति पर लगे विराम नहीं-
“यही बताने,समझाने को,बहन तुम्हारी आई है|
इस अलबेले प्रीति-पर्व की तुमको आज बधाई है ||३||”
“प्रसून” भैया गद्गद होकर,बहन को तोहफ़ा देता है |
अपनी बड़ी बहन के छू कर,पाँव दुआयें लेता है ||
सच्चाई समझो,राखी की कीमत होती दाम नहीं |
‘राखी की कीमत’,अपना कर यदि आदर्श,चुकाई है |
 जिसने,केवल अपनी बहना का वह सच्चा भाई है ||४||

    



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