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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से)

 (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते ||
अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते ||
हिंसा के दुर्दम प्रयास से-
गांधी का सन्देश बचायें ! चलो-चलो यह देश बचायें !!1!!
भेद-भाव की राजनीति से | जाति-धर्म की कूटनीति से ||
चालाकी से पाँव पसारे- विषम भेद की  धूर्त्तनीति से ||
अलगावों के प्रचारकों से-
समता के परिवेश बचायें ! चलो-चलो यह देश बचायें !!2!!
वन-बागों को रोज़ काटते | झील-ताल को नित्य पाटते ||
लालच की फैली जीभों से- प्रकृति-शोभा सुखद चाटते ||
भूमि माफ़ियों के हाथों से-
धरा के केश औ वेश बचायें ! चलो-चलो यह देश बचायें !!3!!
चालवाज़ कुछ मक्कारों से | बाहर वाले ऐयारों से ||
आस्तीन में किये बसेरा- भीतर पनपे गद्दारों से ||
खण्ड हुये भारत की गरिमा-
मय यह धरती शेष बचायें ! चलो-चलो यह देश बचायें !!4!!

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जून-2013 के बाद के गीत/गज़लें (ब) गीत (3) कलेजा मुहँ को आता है ! (‘ठहरो मेरी बात सुनो !’ से)

                                         (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
                                         
देख घिनौने काम कलेजा मुहँ को आता है !
पाप किये अविराम कलेजा मुहँ को आता है !!
दिल में उनके कपट-छुरी है !
नीयत उनकी बहुत बुरी है !!
हाँ जी केवल छल से उनके,
सम्बन्धों की डोर जुडी है !!
बगल में दुष्कर्मों की गठरी-
लेकिन मुहँ में राम, कलेजा मुहँ को आता है !
पूजा सुबहोशाम, कलेजा मुहँ को आता है !!
पाप किये अविराम कलेजा मुहँ को आता है !!1!!

राजनीति की घुनी बाँसुरी !
कूटनीति की तान कनसुरी !!
कान्हाँ बन कर कंस बजाये-
कपट-कुटिल रागिनी बेसुरी !!
भोले-भाले जन-गण रूपी-
छले गये घनश्याम, कलेजा मुहँ को आता है !
शाप है बना इनाम, कलेजा मुहँ को आता है !!
पाप किये अविराम, कलेजा मुहँ को आता है !!2!!

राजनीति का इनको चस्का !
नेताओं को लगा के मस्का !!
इन्हें रक़म दोगे यदि अच्छी-
काम नहीं क्या इनके वश का !!
किसी की जान फँसी मुश्किल में-
दया से है क्या काम, कलेजा मुहँ को आता है !
इनको प्यारे दाम, कलेजा मुहँ को आता है !!
पाप किये अविराम, कलेजा मुहँ को आता है !!3!!


भारत की धरती दुखियारी !
गई धर्म की दशा बिगारी !!
कामी और कुचाली-कपटी-
मन्दिर के कुछ बने पुजारी !!
इनसे कैसे आज बचायें-
अपने पुरियाँ-धाम, कलेजा मुहँ को आता है !
हरि हो गये बदनाम, कलेजा मुहँ को आता है !!
पाप किये अविराम, कलेजा मुहँ को आता है !!4!!


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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत(20) अच्छे काम अकेला कर ! (‘शंख-नाद’ से)

                                        (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
                                 
इस दुनिया में माना थोड़ा, सच का बहुमत कठिन बहुत |
बढ़ा आत्मबल और भरोसा, अच्छे काम अकेला कर !!
सभी गुरुजनों से तूने यह जीवन जीना सीखा है |
उनकी कृपा से जिन्दा रहने, का आ गया सलीका है !!
तुम पर जो उपकार किये हैं, उनको मत अनदेखा कर !
बढ़ा आत्मबल और भरोसा, अच्छे काम अकेला कर !!1!!
जन्म दिया है तुझे जिन्होंने, जिनकी गोद में खेला है |
तेरे ख़ातिर कई तरह का, दर्द जिन्होंने झेला है ||
अपने माता और पिटा की, तन-मन-धन से सेवा कर !
 बढ़ा आत्मबल और भरोसा, अच्छे काम अकेला कर !!2!!
चला भलाई की राहों पर, कोई साथ न आया है |
माना, तूने दुःख झेले हैं, अपना धर्म निभाया है || 
चिन्ता मत कर, नेक काम तू, रह नकार के अलबेला कर !
बढ़ा आत्मबल और भरोसा, अच्छे काम अकेला कर !!3!!
चल तो पड़ अपनी मंज़िल पर, लोग साथ जुड़ जायेंगे !
निराश मत हो, लोग हज़ारों, तेरे पीछे आयेंगे ||
मार्ग में चट्टानें आयें, रोके तेरे क़दमों को-
हाथों में हिम्मत बटोर कर, पथ से उन्हें ढकेला कर !
बढ़ा आत्मबल और भरोसा, अच्छे काम अकेला कर !!4!!



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(खुद को मत बहलाएँ !) ‘ठहरो मेरी बात सुनो’ से !

गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती(कार्त्तिक-पूर्णिमा) की सभी मित्रों को वधाई एवं तन-मन-रूह की शुद्धि हेतु मंगल कामना !
                           (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
                                 
प्रदूषणों से इसे बचा कर, मन इसमें नहलाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!
भेद-भाव से परे सदा है, पावन गंगा रहती !
सब की प्यास बुझाती है यह, सब के हित है बहती !!
इस गंगा की तरह हृदय हम, अपना व्यापक कर लें-
जो भी आये प्यार से मिलने, अपना उसे बनाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!1!!
गंगा की लहरों में हम सब, दोष चित्त के धो लें !
प्रगति करें, पर मत गंगा में कड़वे विष-रस घोलें !!
तरक्कियों में अपराधों को हम मत पलने दें अब-
विकास के श्रापों से बच कर, खुद को तनिक उठाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!2!!
गंगा में डुबकियाँ लगा कर, पाप सदा धोते हैं !      
रोज़ नहाते सुबह-शाम पर, पाप न कम होते हैं !!
दान-पुण्य की नौटंकी का यहाँ बोलबाला है !
मन पर पाखण्डों के गँदले, हम मत दाग़ लगाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!3!!
भजन-भाव में मैल घुल रहा, देखो साँझ-सकारे !
गंगा में दम कहाँ रह गया, इतने पाप निखारे !
सच्चे चिन्तन-मनन से बढ़के, कोई भजन नहीं है !
मिथ्या आराधन-नाटक से, खुद को मत बहलाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!4!!




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