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शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत-- (४)अर्जुन जागो !

सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार उद्धृत






    अर्जुन जागो !
   ^^^^^^^^^^^^^
  मत सोओ हे अर्जुन जागो,
  अपने शस्त्र उठाओ तो !
  ‘असत्’दमन की पावन-

  शिव शुभ रीति निभाओ तो !!


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
‘पापों का दुर्योधन ’उठ कर,उठा रहा सर इधर उधर |
होने लगा ‘शान्ति-कुन्ती’ का, संयम देखो तितर बितर !!
ज़ार ज़ार रोती है, इसको, धीरज तनिक बँधाओ तो !

मत सोओ हे अर्जुन जागो,
अपने शस्त्र उठाओ तो !!१!!
 
‘मानवता’ बन् गयी ‘द्रौपदी’, ‘चीर-हरण’होने वाला |
चाहे अनचाहे नारी का‘शील-हरण’होने वाला ||
‘दुश्शासन’के ‘अंगुल-चंगुल’से तुम इसे छुड़ाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,
अपने शस्त्र उठाओ तो !!२!!
  
लोभ, स्वर्ण के और धरा के,बने हुये ‘दुर्दम कौरव’ |
नाच रहे,मद भरे कुहिंसक कृत्य-नृत्य कलुषित-रौरव ||
लो ‘गाण्डीव’,’क्रान्ति’का कर में,’इन’का वंश मिटाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,
अपने शस्त्र उठाओ तो !!३!!
 
 

न्याय-नीति ‘गान्धारी’ बन कर,नयनों पर पट्टी बाँधे |
नेता बने हुये ‘धृत-राष्ट्र’, होठ सिले चुप्पी साधे||
‘कर्म’,’धर्म’ को न्याय दिलाने,हा हा कार मचाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,
अपने शस्त्र उठाओ तो !!४!!
    
धनवादी तस्कर,उत्कोची’ कितने ‘कंस’ यहाँ जागे !
सोये हैं ‘बल-वीर’ कर्म से,चुरा चुरा कर मन भागे ||
“देवदत्त” में ‘शब्द’ फूँक कर, उसका ‘नाद’ जगाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,
अपने शस्त्र उठाओ तो !!५!!
 

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