आते भादों का अभिनन्दन !
>> Sunday, 5 August 2012 –
गीत(वर्षा-गीत)
है कृष्ण-जन्म होने वाला,
कल बीत गया रक्षा बन्धन ||
जाते सावन को विदा मीत !
आते भादों का अभिनन्दन |^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
नदियों में बाढ उमड़ कर के,
तट बन्ध काटने आई है |
घन घोर घटा ले आँचल में -
अँधियार बाँटने आई है ||
‘आशा’ में ‘निराशा’ में जैसे
मानों हो कर के कुछ प्रसन्न -
पल भर को अँधेरा दूर करे,
बादल में बिजली का प्रहसन ||
जाते सावन को विदा मीत !
आते भादों का अभिनन्दन ||१||
कितने खुश चातक,बक,सारस,
आनन्द मनाते फिरते हैं |
मेंढक अपने स्वर में अद्भुत,
संगीत सुनाते फिरते हैं ||
हर बगिया अदन की बारी है,
हर वन लगता है नन्दन वन -
आकर्षक कितना होता है,
जंगल में मोरों का नर्तन ||
जाते सावन को विदा मीत !
आते भादों का अभिनन्दन ||२||
बट,पीपल,पाकड़,नीम बहुत
खुश होकर झूम रहे देखो|
प्रेमी जोड़े आनन्द मग्न,
बरसात में घूम रहे देखो ||
जो मिले,उन्हेंआनन्द हुआ,
जो बिछुडे उनको दर्द मिला –
विरहिनि को यों डरपाता है,
नभ में भीषण घन का गर्जन ||
जाते सावन को विदा मीत !
आते भादों का अभिनन्दन ||३||
पीले,नीले, कुछ लाल पुष्प,
खेतों में भाजी फूल रही |
डाली पर सारे सुमन हैं ज्यों-
झूलों पर परियाँ झूल रहीं ||
हर “प्रसून”छटा बरसाता है-
इठालाता है,इतराता है |
देखो ‘वर्षा’ के रस से है-
भर गया ‘प्रकृति’ का हर बर्तन ||
जाते सावन को विदा मीत !
आते भादों का अभिनन्दन ||४||
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन
राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें
राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
आधारित है जो कि खमाज थाट का
सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है...
वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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