ओ गोकुल के कृष्ण कन्हैया(एक गंभीर व्यंग्य)
>> Sunday, 12 August 2012 –
उद्बोधन- गीत
******०००*****
ओ गोकुल के कृष्ण कन्हैया !
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||
-----------------------------------
देखो कितने ‘कालिय’ जागे |
बचने जनता किधर को भागे ||
सहमे सहमे डरे डरे हैं –
भोले भाले लोग अभागे ||
कपट,कूट विष-दन्त हैं इनके |
छल-प्रपञ्च दुर् अन्त हैं इनके ||
फन पर कर के था था थैया –
इनका अब है कौन नथैया ||
ओगोकुल के कृष्ण कन्हैया !!
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||१||
देखो लज्जा - हीन 'वासना' |
‘बचपन’ हरने बनी पूतना ||
‘मर्यादा’ के वसन उतारे -
सरे आम चाहती नाचना ||
बिना तुम्हारे, लीला धारी !
तुम्हीं बताओ, अरे मुरारी !!
कौन है इसका नाश करैया ?
रक्षा के विशवास दिवैया !
ओ गोकुल किए कृष्ण कन्हैया !
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||२||
पाप के दुर्योधन, दुश्शासन |
करते हैं हर पुण्य-विनाशन ||
भ्रष्टाचार के कितने ‘कौरव’ !
करते हैं ये धरा पे शासन ||
ये जन जन को सता रहे हैं |
उल्टे रस्ते बता रहे हैं ||
तरह तरह के बने माफिया |
है सब का ईमान हर लिया ||
पाप-निवारक शंख बजैया |
धर्म-युद्ध ‘भारत’ करवैया ||
ओ गोकुल के कृष्ण कन्हैया ||
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||३||
अ मर्यादित द्रौपदी हो रही |
चौराहों पर लाज खो रही ||
करके निज अस्तित्व समर्पित –
दिगम्बरा है स्वयं हो रही ||
‘धन के लोभ’ के आगे हारी |
बनी रूप की यह व्यापारी ||
कितने प्रसन्न चीर खिंचैया !
विवसन कर के नाच नचैया ||
ओ गोकुल के कृष्ण कन्हैया ||
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||४||
‘पौंड्रिक’; 'नकली कृष्ण' हैं कितने !
मुश्किल हैं उँगली पर गिनने ||
उनसे लुटते रोज ‘सुदामा’ –
कहाँ जाएँ बेचारे बसने ||
बहुत हो गया अब तो आओ !
गिरता ‘भारत’ इसे बचाओ !!
तुम बिन कौन है पार करैया ?
डूब रही ‘विशवास' की नैया ||
ओ गोकुल के कृष्ण कन्हैया ||
व्याकुल धरती-जसुदा मैया ||५||