Powered by Blogger.

Followers

सावन भादों (एक मानवीकरण)


  

सावन भादों तृषित धरा की,प्यास बुझाने आते हैं |

घन बरसा कर,हरियाली दे,हमें रिझाने आते हैं ||

 

रेगिस्तानी परिवेशों में वीरानापन हटा हटा -

भावों की नगरी हर दिल में पुन:बसाने आते हैं || 

 
‘हर मन में हो भरी सरसता,बहती नदी मुहब्बत की 

हर नीरसता दूर करें हम' यही सिखाने आते हैं ||

 

छुपे हुये मण्डूक निकल कर जहाँ तहाँ से मद माते 

हुये बेखबर अपने स्वर से,साज बजाने आते हैं ||

   


“प्रसून” आँखें सजल न करना,सबके आगे जहाँ तहाँ-

बहे अश्रु से,मन के सारे भेद प्रकट हो जाते हैं ||



Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP