सावन भादों (एक मानवीकरण)
>> Wednesday, 8 August 2012 –
गज़लिका
सावन भादों तृषित धरा की,प्यास बुझाने आते हैं |
घन बरसा कर,हरियाली दे,हमें रिझाने आते हैं ||
रेगिस्तानी परिवेशों में वीरानापन हटा हटा -
भावों की नगरी हर दिल में पुन:बसाने आते हैं ||
‘हर मन में हो भरी सरसता,बहती नदी मुहब्बत की
हर नीरसता दूर करें हम' यही सिखाने आते हैं ||
छुपे हुये मण्डूक निकल कर जहाँ तहाँ से मद माते
हुये बेखबर अपने स्वर से,साज बजाने आते हैं ||