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ऐसी ईद मनाना तुम ! (एक ब्याजोक्ति)


 

ऐसी ईद 




मनाना तुम !


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मन में भी मिठास भर देना,ऐसी ईद मनाना तुम !

मिल-जुल करके साथ सिवैयाँ,और मिठाई खाना तुम !!


कोंई तुमसे रूठ गया हो, ले कर कुछ ‘खटास’ दिल में –

भूल के शिकबे, गिले, पास में जा कर उसे मनाना तुम ||




दुश्मन भी गर दरवाज़े पर, आ जाए मिलने तुमसे -

भूल दुश्मनी,आगे बढ़ कर,उसको गले लगाना तुम !!


नीयत की दौलत सँभाल कर के,बड़ी हिफ़ाजत से रखना-

‘लालच’के हर जाल से बचना, औ ईमान बचाना तुम !!


मजहब की दीवार तोड़ कर,दिल को बहुत बड़ा करना-

जिसके पास हो प्यार का हीरा,अपना उसे बनाना तुम!!
  



किसी धर्म का,किसी जाति का,अमीर हो या मुफलिस हो –


वतन परस्ती जिसमें भी हो,उस पर प्यार लुटाना तुम!!

 


नकली खुशबू “प्रसून”में हो,दूर सदा उस से रहना-

‘गुलशन’के असली फूलों से रिश्ते सदा निभाना तुम !!

 



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