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शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(स) प्रेरण-(३)-पथ पर होना मत विकल !

पथ पर मत होना विकल !
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तूफानों से बच निकल !


पथ पर मत होना विकल !!


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तम से तुम न हताश हो!

रंच न अरे  निराश हो !!

करो यत्न,तुम करो श्रम !

बदलेगा यह काल-क्रम || 

मिट जाएगा अखिल भ्रम |

फूलेगा आशा का द्रुम ||

सबल तुम्हारी बाँह है |

धमनी में सु-प्रवाह है  ||

युग को तुम दोगे बदल |

लेकर तुम निश्चय अटल ||

लो विचार प्रति पल नवल !

पथ पर मत होना विकल !!१!!


 

एक नया विशवास ले |

आस भरी हर साँस ले ||




बाधाओं से हो निडर |


साहस, शक्ति संजो कर ||


तपो -ताप से तुम निखर |


ज्ञान-किरण बन कर बिखर ||




पैनी अगर निगाह है |

निष्कंटक  हर राह है ||




यदि इच्छाएं हैं प्रबल |


तुमको क्यों होना विचल ??


चलो, गिरो मत, तुम ,सँभल |



  पथ   पर मत होना विकल !!२!





प्रगति चढ़ाई पर चढो !

बढ़ो ! बढो !! आगे बढ़ो !!!



हो कर चौकन्ने सजग |


फूंक फोंक कर धरो डग ||


समझो अपना अखिल जग |


किन्तु न अपना तजो  ढंग ||



चारों ओर ' गुनाह' है |

निर्झर पाप- प्रवाह है ||



मोह, द्रोह में तू न जल !


बन कर 'सावन-सरस-जल' ||


सींच 'पाप-सन्त्प्त थल !


पथ   पर मत होना विकल !!३!




"प्रसून" काँटों में खिलो !

निर्जन बाटों में खिलो !!


हर राही को महक दो !



हर 'कोकिल' को चहक दो !!

हर भँवरे को 'प्यार' दो ! 

'हास' भरे उपहार दो !!




उर में यदि कुछ चाह है |


खुली हुई हर राह है || 



बाधा में मत मन बदल !

वीराना हो मरुस्थल ||

खिलो 'पंक'में बन 'कमल' |

पथ   पर मत होना विकल !!४! 



 











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