शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(स) प्रेरण-(३)-पथ पर होना मत विकल !
>> Tuesday, 21 August 2012 –
गीत (एक प्रेरण-गीत)
पथ पर मत होना विकल !
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तूफानों से बच निकल !
पथ पर मत होना विकल !!
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तम से तुम न हताश हो!
रंच न अरे निराश हो !!
करो यत्न,तुम करो श्रम !
बदलेगा यह काल-क्रम ||
मिट जाएगा अखिल भ्रम |
फूलेगा आशा का द्रुम ||
सबल तुम्हारी बाँह है |
धमनी में सु-प्रवाह है ||
युग को तुम दोगे बदल |
लेकर तुम निश्चय अटल ||
लो विचार प्रति पल नवल !
पथ पर मत होना विकल !!१!!
एक नया विशवास ले |
आस भरी हर साँस ले ||
बाधाओं से हो निडर |
साहस, शक्ति संजो कर ||
तपो -ताप से तुम निखर |
ज्ञान-किरण बन कर बिखर ||
पैनी अगर निगाह है |
निष्कंटक हर राह है ||
यदि इच्छाएं हैं प्रबल |
तुमको क्यों होना विचल ??
चलो, गिरो मत, तुम ,सँभल |
पथ पर मत होना विकल !!२!
प्रगति चढ़ाई पर चढो !
बढ़ो ! बढो !! आगे बढ़ो !!!
हो कर चौकन्ने सजग |
फूंक फोंक कर धरो डग ||
समझो अपना अखिल जग |
किन्तु न अपना तजो ढंग ||
चारों ओर ' गुनाह' है |
निर्झर पाप- प्रवाह है ||
मोह, द्रोह में तू न जल !
बन कर 'सावन-सरस-जल' ||
सींच 'पाप-सन्त्प्त थल !
पथ पर मत होना विकल !!३!
"प्रसून" काँटों में खिलो !
निर्जन बाटों में खिलो !!
हर राही को महक दो !
हर 'कोकिल' को चहक दो !!
हर भँवरे को 'प्यार' दो !
'हास' भरे उपहार दो !!
उर में यदि कुछ चाह है |
बाधा में मत मन बदल !
वीराना हो मरुस्थल ||
खिलो 'पंक'में बन 'कमल' |
पथ पर मत होना विकल !!४!
एक नया विशवास ले |
आस भरी हर साँस ले ||
बाधाओं से हो निडर |
साहस, शक्ति संजो कर ||
तपो -ताप से तुम निखर |
ज्ञान-किरण बन कर बिखर ||
पैनी अगर निगाह है |
निष्कंटक हर राह है ||
यदि इच्छाएं हैं प्रबल |
तुमको क्यों होना विचल ??
चलो, गिरो मत, तुम ,सँभल |
पथ पर मत होना विकल !!२!
प्रगति चढ़ाई पर चढो !
बढ़ो ! बढो !! आगे बढ़ो !!!
हो कर चौकन्ने सजग |
फूंक फोंक कर धरो डग ||
समझो अपना अखिल जग |
किन्तु न अपना तजो ढंग ||
चारों ओर ' गुनाह' है |
निर्झर पाप- प्रवाह है ||
मोह, द्रोह में तू न जल !
बन कर 'सावन-सरस-जल' ||
सींच 'पाप-सन्त्प्त थल !
पथ पर मत होना विकल !!३!
"प्रसून" काँटों में खिलो !
निर्जन बाटों में खिलो !!
हर राही को महक दो !
हर 'कोकिल' को चहक दो !!
हर भँवरे को 'प्यार' दो !
'हास' भरे उपहार दो !!
उर में यदि कुछ चाह है |
खुली हुई हर राह है ||
बाधा में मत मन बदल !
वीराना हो मरुस्थल ||
खिलो 'पंक'में बन 'कमल' |
पथ पर मत होना विकल !!४!