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शेर कपट के जंगल में

    
 
‘राजनीति’के जाल में उलझा-  
  शेर कपट के जंगल में |
  फँसा है ‘मंगल’ धूर्त नीति के

  काले घोर अमंगल में ||

     

    छल फरेब के दाँव पेच से 

  उठा पटक की, मल्लों ने |

  ‘सच’ का योद्धा हारा कुश्ती, 
  ‘झूठ’ के कपटी दंगल में ||
    
    
    स्वर्ग धरा पर लाने का 
  सपना,जो देखा, टूट गया-
  ‘ऐरावत’ सिद्धान्त का देखो,
  गिरा,फँस गया दलदल में ||
 

  
       एक ‘फ़रिश्ता’ प्यास बुझाने’ 
  बैठा था गंगा-तट पर-
  पी कर दो अंजुली पछताया,
  जहर मिला गंगा जल में ||
 
    जगी पिपासा घूँट पी लिया, 
    "प्रसून” कितनी जलन मिली-

    था कितना तेज़ाब छद्म का, 

    विशवासों की छागल में ||


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