शेर कपट के जंगल में
>> Thursday, 9 August 2012 –
गज़लिका
‘राजनीति’के जाल में उलझा-
शेर कपट के जंगल में |
फँसा है ‘मंगल’ धूर्त नीति के
काले घोर अमंगल में ||
छल फरेब के दाँव पेच से
उठा पटक की, मल्लों ने |
‘सच’ का योद्धा हारा कुश्ती,
‘झूठ’ के कपटी दंगल में ||
‘झूठ’ के कपटी दंगल में ||
स्वर्ग धरा पर लाने का
सपना,जो देखा, टूट गया-
सपना,जो देखा, टूट गया-
‘ऐरावत’ सिद्धान्त का देखो,
गिरा,फँस गया दलदल में ||
गिरा,फँस गया दलदल में ||
एक ‘फ़रिश्ता’ प्यास बुझाने’
बैठा था गंगा-तट पर-
पी कर दो अंजुली पछताया,
जहर मिला गंगा जल में ||
जहर मिला गंगा जल में ||
जगी पिपासा घूँट पी लिया,
"प्रसून” कितनी जलन मिली-