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शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत--(२) !! नींद छोड़ कर जागिये !!



कर्म से मुहँ मोड़ कर,दूर मत भागिये !
भारत-निवासी,नींद छोड़ कर जागिये !!
   !!!!!!!*****!!!!!!!!*****!!!!!!!!



स्पर्धा कीजिये,पर द्वेष हीन कीजिये !
ईर्ष्या है ज़हर,इसे आप मत पीजिये !!
निज सुख साधनों के लिये यत्न करें किन्तु-
दुःख,दर्द दूसरों के देख कर पसीजिये ||
ऐश करने के लिये कैश न बटोरिये |

लूटिये-चुराइये न, ठगिये न मांगिये !!१!!

  

  

‘शकुनि’, औ ’आम्भीक’,’जयचंद’न होइये !
‘केसर’ के खेत में न ‘नागफनी’ बोइये !!
यारी, ऐयारी या किसी भी मक्कारी से –
‘गद्दी’,’कुर्सी’मिले इसी सोच में न रोइये !!
बन कर आतंकवादी,सौदा कर शत्रु से –
‘अपनों’के सीने पर,गोलियाँ न दागिये !!२!!

‘तन्त्र’,’मंत्र’की ठगी की झाड़ियाँ उखाड़िये !
प्रेम,भक्ति,श्रद्धा,निष्ठा-‘पादपों’ को गाड़िये !!
‘आस्था’के ‘बाग’में ‘पाखण्ड’हैं ‘विषैले झाड़’-
कर के जतन कुछ, इनको उजाड़िये !!
चुभते हैं घिसे-पिटे रीति औ रिवाज़ कई –
अर्थ हीन हो गये हैं उन्हें आज त्यागिये !!३!!
   
एक दूसरे से मुहँ, ऐसे मत मोड़िये !

जिद्द बुरी आपस में लड़ने की छोड़िये !!

‘स्वार्थ’,’लोभ’,’वैर’’दम्भ’,’छल’के पंजे से-

‘एकता’की ‘माला’ के “प्रसून” मत तोड़िये !!

शत्रुता को भूल कर,पास आये शत्रु भी तो-

अंक में लपेट-भेंट गले जा के लागिये !!४!!






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