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आज़ादी ‘सन्ताप’बन गयी |


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समझा था ‘वरदान’ जिसे वह 

आज़ादी ‘अभिशाप’बन गयी |

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पुण्य सलिल की पावन गंगा,

हुई प्रदूषित, पाप बन गयी |

समझा था ‘वरदान’जिसे वह,

आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कितनी अनियंत्रित मनमानी|सूख गया नयनों का पानी ||



मर्यादा की ‘लक्ष्मण रेखा’, लांघ रहे  हैं हिन्दुस्तानी ||

आज़ादी का अर्थ न जाना |

‘आवारगी’ इसे है माना |

‘उच्छ्रंखलता’ आज़ादी की,एक निरर्थक माप बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||१||


    

हर कोई आज़ाद यहाँ है |दंगा और फ़साद यहाँ है ||



‘अच्छाई’ के साथ ‘बुराई’, करती खुला विवाद यहाँ है ||

बड़ा कठिन है इसे निभाना |

होगा इसको पाठ पढ़ाना ||

त्याग रहित हर भोग-कामना सब के हित सन्ताप बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||२||



माना हम को आज़ादी है | हर वादी का प्रतिवादी है ||

‘स्वर’, ’चिंतन’ पर बोझ नहीं है, फिर भी कितनी बरबादी है ||

कर के कुप्रयास मन माना|

चाह रहे ‘दुर्मन्त्र सिखाना ||

कुत्सित ‘दुष्चिन्ता’ की धारा,’नाश’ का क्रिया कलाप बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||३||

    



‘हिंसा’ का ‘बाज़ार’ गरम है | || हुई निर्वासन ‘लाज शर्म’ है ||

बुद्धि, परिश्रम,अनुशासन सब, भूल चुके हर धर्म- कर्म हैं ||

चाह रहे सब भरें खज़ाना |
‘पाप’का बुन कर ताना बाना ||

धर्म हीन ‘धर्मों’ की आँधी,’अधर्म’ अपने आप बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||४||

 


‘अनाचार’ कितना स्वतंत्र है | कितना घायल ‘प्रजातंत्र’है ||

‘कुर्सी’ के दुर्दम्य ‘पुजारी’,पढते ‘कुनीति’ के कुमन्त्र हैं ||

भूल रहे हैं प्रेम-तराना |

कहते हैं यह ‘राग पुराना’ ||  

यह ‘कुनीति’विष के फन वाला, मायावी ‘सुरचाप’ बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||५||

 

धन की लोभ लालसा ललकी | यों पापों की गागर छलकी ||

सँवरे ‘आज’ किसे है चिन्ता,चिन्ता में डूबे सब कल की ||

भूल गये इतिहास सुहाना |

याद रहा बस, दाम कमाना ||

माँ की ममता, देश-भक्ति सब,मायावी सुरचाप बन गयी ||

समझा था ‘वरदान’ जिसे वह,आज़ादी ‘अभिशाप’ बन गयी ||६||

  



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