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यह आज़ादी (आज़ादी का मूल्य )

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नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी |

इसकोपानेको भारत ने,थीं हस्तियाँ मिटा दीं ||

 

फूँका शंख जागरण का जब,नींद सभी की टूटी |
नयी चेतना भरी हृदय में,लीक तजी हर झूठी ||
सबके हृदयों में जागी तब,सोई शक्ति अनूठी ||
प्रकट हुई एकता-प्रेम की संजीवनी-सु-बूटी ||
परिवर्तन की और क्रान्ति की, सबने धूम मचा दी||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||१||
  


आडम्बर, पाखण्ड, रूढियाँ,ज्ञान- हीनता मेटी |
पशुबलि, नरबलि जैसी बातें, छोड़ींओछी,हेठी ||
अपनी सारी जीवन-सत्ता माँ- चरणों में भेंटी |
देश वासियों ने फिर अपनी बिखरी शक्ति समेटी |
तमो गुणी पैशाचिक ‘पशुता’ की हर वृत्ति मिटा दी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||२||
        
हर चिनगारी जली भड़क कर, और बन गयी शोला |
‘जीवन से बढ़ कर भारत है’, बच्चा बच्चा बोला ||
असहनीय दुःख झेले सबने, कोंई न पथ से डोला |
अंगरेजों की मार झेलने, सब ने सीना खोला ||
हर सीना चट्टान बन गया, शक्तिवान फौलादी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||३||
 
अंगड़ाई ले उठी देश की जनता सीधी सादी |
भीषण ज्वाला जाली,चली जब परिवर्तन कीआँधी ||
‘चाचा’ बन कर नेहरू जागे, ‘बापू’ बन कर गाँधी |
पिरो एकता के धागे में बिखरी जनता बाँधी ||
छीन फिरंगी के हाथों से सत्ता हमने साधी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||४||
    
सागर-मन्थन से लक्ष्मी की भाँति मिली आज़ादी |
घोर अमावस बाड़ चाँदनी सदृश मिली आज़ादी ||
‘पतझर’ बीता देश सु –वन में हँसी ‘कली’ आज़ादी |
‘जेठ की लू’ के बाद गगन में थी ‘बदली’ आज़ादी ||
मानों ‘हीरक मणि’ पा जाये इक कँगला फरियादी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||५||



‘आज़ादी’ की ‘धरती’ पा कर, सब ने इसे संवारा |
‘प्रजातन्त्र’,’ ’गणतन्त्र’के शोधक जल से इसे पखारा ||
बल्लभ भाई पटेल ने फिर ‘सत्तावाद’ को मारा ||
धरती माँ को राजाओं के चंगुल से था निकारा |
भीमराव ने ‘जातिवाद’ की उथली लीक मिटा दी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||६||
 
वीर जवाहर,लाल बहादुर ने यह ‘मधुवन’ सींचा |
‘हरा भरा’ इंदिरा गाँधी ने था कर दिया ‘बगीचा’ ||
नये नियोजन-योजन डोरों से विकास-रथ खींचा |
भारत जग के सब देशों से अब न रह गया नीचा ||
‘फूलों’ और ‘फलों’ से ‘मधुऋतु’ ने हर ‘डाली’ लादी ||
नहीं सरलता से पायी है,हमने यह आज़ादी ||७||
 

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