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शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(र)-चलो बचाएं देश को !! (रूपक-गीत) (२) !!!आओ बचा लें देश को!!!



       (२)

!!!आओ बचा लें देश को!!!

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

है इसका‘तन’दुखने लगा –
आओ बचा लें देश को !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

‘धरती’ की दुर्दम ‘प्यास’ ने |
‘सत्ता मिले’, इस आस ने ||
हर ‘एकता’ को छल लिया-
टूटे हुये ‘विशवास’ ने ||
मत-भेद इतने बढ़ गये-
‘दल-दल’ में यह फँसने लगा |
आओ निकालें देश को !!
आओ बचा लें देश को !!१!!

हर सुख बढ़ा,राहत बढ़ी |
फिर और भी चाहत बढ़ी ||
पथ बहुत ही चिकने हुये-
सुविधा की ‘चिकनाहट’बढ़ी ||
दे गयी हम को दगा,‘गति’–
लड़खड़ा कर गिरने लगा |
आओ संभालें देश को !!
आओ बचा लें देश को !!२!!

‘कुण्ठा के घेरे’ बढ़ गये |
कुछ घनेरे बढ़ गये ||
‘राहें’ न हमको सूझतीं –
कितने ‘अँधेरे’ बढ़ गये ||
हम क्या करें ? जायें कहाँ ??
‘माहौल’ है खलने लगा |
दें कुछ ‘उजाले’ देश को !!
आओ बचा लें देश को !!३!!

हम को बहुत ही खेद है |
इसमें अजब कुछ भेद है ||
खेला है ‘हिन्दुस्तान’ को-
शायद समझ कर ‘गेंद’ है ||
‘ये खिलाड़ी’ हैं देश कुछ –
‘यह खेल’ अब खलने लगा |
अब मत ‘उछालें’ देश को !!
आओ बचा लें देश को !!४!!

‘माली’ कहाँ के ठाग रहे !
‘विष-वृक्ष’ क्यों हैं उग रहे !!
कितने कहाँ “प्रसून” हैं ?
‘हम खोज लें यह असलियत’-
‘यह चाह’ मन में लो जगा !
आओ मंझा लें देश को !!
आओ बचा लें देश को !!५!!


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