ओ कन्हैया !
>> Saturday, 11 August 2012 –
गज़लिका
ओ कन्हैया !, अब पधारो, मेरे भारतवर्ष में !
भ्रष्ट 'कालिय नाग' मारो, मेरे भारतवर्ष में ||
लालचों के आततायी कंस के कुछ वंश हैं -
दशा इनकी,तुम बिगारो, मेरे भारतवर्ष में ||
छल ,कपट के,कुबल के हैं 'कुबलिया' कितने बढे !
इन्हें तुम आकर सुधारो, मेरे भारतवर्ष में ||
मन का वृन्दावन 'कलुषता' दैत्यों ने ठग लिया-
इसे चंगुल से उबारो, मेरे भारतवर्ष में ||
"प्रसून" 'मीरा' एकनिष्ठा और 'राधा' प्रेम की -
इन्हें कारा से निकारो, मेरे भारत वर्ष में ||