गज़ल-कुञ्ज (गज़ल-संग्रह) (अ)प्रियतम प्रणाम(आराधना गज़ल) (१) प्रियतम प्रणाम -(ख) प्रियतम तुमको मेरा प्रणाम
>> Sunday, 17 June 2012 –
आराधना गज़ल
(१)प्रियतम प्रणाम (क्रमश:)--
(ख)प्रियतम तुमको मेरा प्रणाम !
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तुम अनाम फिर भी कोटिनाम |
प्रियतम तुमको मेरा प्रणाम !!
निर्बाध 'काल'की गति मन्थर-
रोकते उसे भी दे विराम ||
कण कण में तुम रमते हो यों-
कहते तुमको लोग राम ||
कामना-हीन निष्काम हो तुम !
पर तुम हो अनन्त सत्य काम ||
अनिकेत,किन्तु सर्वत्र व्याप्त |
जड़- चेतन सबके परम धाम ||
जो मिले, तुम्हारी कृपा -गन्ध-
हो जाये 'प्रसून' धन्य नाम ||
बहुत सुन्दर ...
कण कण में तुम रमते हो यों-
कहते तुमको लोग राम ||
आध्यात्मिक हाइकु का मजा दे गया ग़ज़ल आराधन .
राम की महिमा को आपने ग़ज़ल में कहा .वाह अभिनव प्रयोग .बहुत खूब .