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बीज प्यार के बोकर देखो(मेरे ग्रन्थ, 'शंख-नाद' से)

  


ऊसर मन में बीज प्यार के बो कर देखो |
और भावना में करुणा के फूल खिलाओ ||



यह समाज  क्या तुमको कुछ पथ दिखलाएगा?
कोई नयी अनोखी विद्या सिखलाएगा??
भटका स्वयम् तुम्हारे आगे चल पायेगा??
सोचो इससे तुमको अब कया मिल पायेगा???
 कर के यत्न सहारा देकर इसको थोड़ा-
अपना स्वत्व सँभालो, इसको भी चेताओ ||१||
    
  

तुमको भटका हुआ बताने वाले सुन लें |
ये उजले तन,वसन, हृदय के काले सुन लें ||
बुझे हुए हैं जिनमें ज्ञान उजाले सुन लें|
अपना जीवन जिनको किया हवाले सुन लें| 
'उदरम्भर' हैं इन्हें आत्माभास नहीं है-  
इनकी सोई आत्मशक्ति है इसे जगाओ||२||
    
तुम्हें सुधारे वह जो स्वयम सुधर कर आये |
जो न पंथ से भटका हो वह राह दिखाए ||
स्नेह दीप सा अपना सब अस्तित्व जलाये |
वह त्यागी वैरागी जीवन-ज्योति दिखाए ||
देखो, खोजो शायद कोई कहीं छिपा हो-
करकट की ढेरी में हीरक ,उसे उठाओ ||३||
   
मत अपने को हीँन समझ कर कुण्ठित होना |
बस, विकास के लिये अग्रसर सदैव होना ||
काँटों में भी हँसाना देखो कभी न रोना |
श्रम-धागे में मोती से कर्तव्य पिरोना ||
निविड़ झाडियों में "प्रसून" से प्रफुल्ल हो कर -
बांटो जग को हास स्वयम् भी तुम मुस्काओ ||४||
   

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