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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ट) ‘मानवीय पशुता’ |(५) ‘रति’ मदिरा पी कर चली |



इस रचना में अपने क्रम के अनुसार यह बताया गया है कि घटिया गन्दे विज्ञापनों और नशाखोरी  का समाज के 'भोले बचपन' पर क्या असर पडता है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 




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त्याग ‘आवरण लाज का’,  ‘शील के वसन’  उतार |
‘रति’  मदिरा  पी कर  चली, लिये ‘वासना-ज्वार’ ||


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घर   के   बेटे - बेटियाँ,   अल्पायु   में  आज  |
ढूँढ  रहे  हैं  ‘भोग’  सब,   दूषित  ‘बाल-समाज’ ||
‘नृत्य-कला’  के  नाम  पर,  ‘नग्नवाद’  का नाच |
‘कामुक मुद्रा’  दिखाते,   ‘नर्तक’   बने  ‘पिशाच’ ||
‘नर्तकियाँ’   भी   नाचतीं,   ‘अपने अंग’   उघार |
‘रति’ मदिरा पी कर  चली, लिये ‘वासना-ज्वार’ ||१||


इस रचना में 


विज्ञापन   में   नारियाँ,   कर  ‘अभिनयदुश्शील’ |
‘नाम’ कमाती  फिर  रहीं,  कर ‘नाटक अश्लील’  ||
‘शैशव’  के  मन  पर  पड़ी,  ऐसी  ‘मीठी चोट’  |
‘भोले-निश्छल ह्रदय’   में,   भरे  ‘अनगिनत खोट’ |
‘दृश्य-निर्वसन’  देख  कर,  ‘कामी’  बने  ‘कुमार’ ||
‘रति’ मदिरा पी कर  चली, लिये ‘वासना-ज्वार’ ||२||



‘लक्षमन-रेखा’  तोड़   कर,   ‘तबियत के रंगीन’  |
दुराचार  ‘रावण’   बना,   ‘मर्यादा’   से   हीन   ||
‘सिया-लाज’ का ‘हरण’ कर,  ‘कामी’ कई  किशोर  |
धूमिल कर  के  आयु  का, ‘गँदला’  करते  ‘भोर’ ||
‘काम-पिपाशा’  कर  रही,   ‘मर्यादा’   को   पार  |
‘रति’ मदिरा पी कर  चली, लिये ‘वासना-ज्वार’ ||३||


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सभ्यता (एक नवीन तम गीत)

सभ्यता  का विकास निर्वस्त्रता से स-वस्त्रता के रूप में हुआ है |यदि अब हम निर्वस्त्रता को अपना रहे हैं तो कैसे कहें कि हम सभ्य हैं ? इस सब्य्ता के परिणाम हम सब देख ही रहे हैं | नग्नता  और नशाखोरी  के कारण मानव की 'यौन-पिपासा' ने  पशुओं को  भी पीछे छोड़ दिया है !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

मेरे ग्रन्थ 'ठहरो मेरी बात सुनो !' में नयी रचना 


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(१५अप्रैल-२०१३ को एक अबोध बालिका से हुये ‘दुष्कर्म’ की प्रतिक्रया)
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‘विधि के विधान’ की बनायी हुई ‘सभ्यता’ |
विश्व में ‘वरदान’ सी लायी  हुई ‘सभ्यता’ ||
ऐसी  पड़ी  चोट आज ‘युग के बदलाव’ की-
‘काल के गाल’ में समायी  हुई  ‘सभ्यता’ ||

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‘ताप’ सह लिये गरीब ने ‘जठर की आग’ के |
जल गये  हैं ‘वृक्ष’ सारे ‘चाहतों के बाग’ के ||
पजर पजर के विचारी, देखो  ‘राख’ बन गयी-
‘भट्टियों’ में किस तरह  तपायी हुई ‘सभ्यता |
‘काल के गाल’  में समायी  हुई  ‘सभ्यता’ ||१||


‘नग्नता’  हमारा चलन  है  नहीं  रहा  कभी  |
‘लाज-हीनता’ को हमने  है  नहीं  सहा  कभी ||
हमें  ‘पूर्वजों’ ने  ‘मरजाद  का  सबक’  दिया-
विदेशियों द्वारा  यह  बतायी  हुई  ‘सभ्यता’ |
‘काल के गाल’  में समायी  हुई  ‘सभ्यता’ ||२||



‘रूप की जवानी’  कण्टकों  से  भर गयी कहीं |
‘दहेज़’ के लिये ‘प्रीति’ जल के मर गयी कहीं ||
चढ़ी  है  भेंट  ‘लोभ की सुलग रही अग्नि’ से-
‘पाप की आग’  में  जलायी  हुई  ‘सभ्यता’ |
‘काल के गाल’  में समायी  हुई  ‘सभ्यता’ ||३||


बालिका-किशोरियों का  रेप  कर दिया गया |
‘कौमार्य-“प्रसून’’’ में  ‘अंगार’ भर दिया  गया ||
‘वहशियों’ की ‘भूख’  की यह शिकार हो गयी-
‘मौत के आगोश’ में सुलायी  हुई  ‘सभ्यता’ |
‘कालके गाल’  में समायी  हुई  ‘सभ्यता’ ||४||



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