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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l (४)किसे चोर कहें ?(व्यंग्योक्ति-वक्रोक्ति)


पिछली तीनों रचनाओं का समाधान है इस एक रचना में |जो सब को चोर कहते नहीं अघाते हैं उन्हें करारा उत्तर दिया है, इस गीत में | (सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
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दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !

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‘ईश्वर’ की ‘लीला’ है देखो-

‘कान्हां’ ने चुराया था ‘माखन’ |

‘बादल’ का लगा कर के ‘पर्दा’-

‘रोशनी’ चुराता है ‘सावन’ ||

नित ‘रात’ चुराती है ‘सूरज’-   

‘रजनी’ हरती, ‘दिन के प्रहसन’ |

तचते हर ‘जेठ के मौसम’ में-

चुर जाते ‘कोकिल के कूजन’ ||

तुम चुरा के ‘कुछ’ ले जाते हो-

तुम्हें ‘चोर’ किस तरह यार कहें !!

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!१!!



‘अस्मत के बसेरे’, ‘सुन्दर तन’-

‘हर शाम’ चुराये जाते हैं |

औ ‘लज्जा के मोती’, ‘होठों-

के जाम’ चुराये जाते हैं ||

चालाकी से चुपके ‘जेबों-

के दाम’ चुराये जाते हैं ||

‘मेहनत के फ़रिश्तों’ के ‘श्रम के-

अंजाम’ चुराये जाते हैं ||

जिस को देखो, वह ‘चोर’-

किसी को चोर यहाँ बेकार कहें ||

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!२!!



 

‘डुप्लीकेटों की दुनियाँ’ में-

‘ऐक्टर की सूरत’ चुरती है |

‘मन्दिर’ में सोने- चाँदी की-

‘भगवान की मूरत’ चुरती है ||

कुछ तो चुरती है ‘ज़रुरत’ में-

कुछ ‘गैर ज़रूरत’ चुरती है |

‘संगीत’, ‘गीत’, ‘कविता’ औ ‘कला’-

की ‘इशरत-शोहरत’ चुरती है ||

हैं ‘चोर’ कई ‘नामी’ जिन को-        

‘नायक’, ‘सारा संसार’ कहे ||

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!३!!


 

‘ऊँचे रिश्तों’ की आड़ में अब-

‘नौकरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ |

‘ऊँचे लोगों’ को खुश करने-

‘छोकरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ ||

‘रंगीन मिजाजों’ द्वारा कुछ-

‘सुन्दरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ |

‘तितलियों’ से ‘सुन्दर पर’ ओढ़े-

कुछ ‘परियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ ||

जो ‘चोर’ नहीं हैं, उन का अब-

कैसे होगा ‘उद्धार’, कहें !!

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!४!!



‘शतरंज के माहिर’, ‘बिसात’ में-

‘गोटों’ की ‘चोरी’ करते हैं |

कुछ ‘सफ़ेद कपड़े’ पहन-पहन-

‘वोटों’ की चोरी करते हैं ||

कुछ, ‘घर-घर’ जा कर ‘रातों’ में-

‘नोटों की चोरी’ करते हैं |

यहाँ ‘बड़े चोर’ सब, अपनों से-

’छोटों’ की चोरी करते हैं ||

हर ‘बड़े शहर’ में खुले कई-

जिन को सब ‘चोर बज़ार’ कहें ||

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!५!!


फिर काफ़ी बड़े ‘सिकन्दर’ हैं-

‘दिल के कुछ खोटे चोर’ यहाँ |

‘चोरी से’ पी कर ‘रक्त’ हुये-   

‘थुलथुल’ कुछ ‘मोटे चोर’ यहाँ ||

कुछ ‘पैसों’ की, ‘क़ानून’ की कुछ-

लेते हैं ‘ओटें’, ‘चोर’ यहाँ |

उफ़ ! ‘दुखियों’ पर, ‘बेचारों’ पर-

‘करते हैं चोटें’, ‘चोर’ यहाँ ||

इन ‘चोरों’ के सहते हैं ‘जुल्म’-

किस से जा कर, ‘लाचार’ कहें !!

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!६!!



‘धरती माँ’ के ‘तन’ के सुन्दर-

यहाँ ‘वेश’ चुराये जाते हैं |

हरे-भरे, ‘वन रूपी’, ‘मोहक-     


केश’ चुराये जाते हैं ||

‘प्रकृति’ के, ‘सुभग, सुखद, स्वर्गिक-

परिवेश’ चुराये जाते हैं |

‘छल-प्रपन्च’ से कुछ ‘गोपनीय-

सन्देश’ चुराये जाते हैं ||

जब ‘हर चोरी’ है ‘सरकारी’-

इसे कैसे ‘अत्याचार’ कहें !!

दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-

हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!७!!



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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार (३)सारे चोर यहाँ | (एक गंभीर व्यंग्य)


संविधान का कहीं भी , किसी भी प्रकार से उल्लंघन चोरी है! क़ानून की चोरी ! घूस, कोई भ्रष्टाचार, अन्याय 
अपहरण, कालाबाजारी, जमाखोरी, कर चोरी, आदि सब चोरियाँ हैं ! यह रचना  एक स्वप्न के आधार पर लिखी गयी  है | चोरों ने आपस में बात चीत की और कवि ने उसे सुन कर उठाते भावों को 'रचना' में ढाल दिया | चोर कहा रहें है कि हमें सब चोर कहते हैं जब कि सभी चोर हैं !  



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हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !
फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!
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कुछ फांस ‘प्रेम के घेरे’ में-

‘मन की चोरी’ कर लेते है |

कुछ ‘काले कुटिल अन्धेरे’ में-

‘तन की चोरी’ कर लेते हैं ||

यहाँ ‘तख़्त’ चुराये जाते हैं-

यहाँ ‘ताज’ चुराये जाते हैं |

जो पहले चुराये जाते थे-

वे आज चुराये जाते हैं ||

कुछ लोग इसे ‘कलि युग’ कहते-

कहते हैं ‘समय का दौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!१||


पहले तो ‘वासना के कामी’-

‘नारियाँ’ चुराते ‘रावण, बन |

पर आज,’वृद्ध’,’बालक’,‘नर’ सब-

चुरते हैं ऐंठने को कुछ धन ||

‘आवाज़’ की चोरी होती है-

यहाँ ‘साज़’ चुराये जाते हैं |

जो रक्खे जाते गुप्त कई-

वे राज़ चुराये जाते हैं ||

जो सब से बढ़ कर चोर यहाँ-

उस को कहते ‘सिर-मौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!२||

 

‘माखन’, ‘दधि’, ‘छाछ’ चुराये थे-

‘गोकुल के कृष्ण कन्हैया’ ने |

‘दिल’ चुरा लिया ‘हर वृज-वासी’-

का ‘प्यारे रास रचैया’ ने ||

‘फिल्मों की दुनियाँ’ में, ‘अभिनय’-

‘अन्दाज़’ चुराये जाते हैं |

‘गोरी सुन्दरियों’ के ‘नखरे-

औ नाज़’ चुराये जाते हैं ||

‘रोटी-रोज़ी’ सब चुरते हैं-

चुरते हैं ‘मुहँ के कौर’ यहाँ ||

हम,तुम, वे, सारे चोर यहाँ !

फिर कहें किसे अब चोर यहाँ !!३||


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