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ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (ख) आग का खेल (५) ‘अपेक्षा’के ‘तन’पर ‘आघात’ ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


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आज एक रहस्य-वादी रचना,'आग के जखीरे' में फँसे 'मेमने' की तरह प्रस्तुत है | रचना में 'प्रियतम' शब्द,समाज की 'वांछित मनोकामना'
के लिये प्रयुक्त है |  (सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार) 



अपेक्षाके ‘तन’पर ‘आघात’

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तची ‘प्रतीक्षाओं की ज्वाला’ में ‘चाहत’ ‘जल उठी’|

अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात’ !!


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‘घोर निराशाओं’ का ‘कुहरा’ |

‘मन-आँगन’ में आज है भरा ||


कैसे किसे बतायें, कैसे ‘बोझल उम्र’ कटी !

उस ‘कोहरे की धुन्ध’ बन् गयी,जैसे ‘काली रात||

अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात’ |!१||





‘सिसकी’ तले दब गया ‘क्रन्दन’ |

क्योंकर हाय ‘तप गया’’चन्दन !!

हमें नहीं रुचता है जो भी,करती ‘प्रकृति-नटी’ |

‘दुश्मन’ ‘जाड़ा’,’दुश्मन’ ‘गर्मी’,’दुश्मन’ है ‘बरसात’||

अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!२||


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प्यासे प्यासे सूने नयना |

बरसे ज्यों मरुथल में झरना ||

‘आयु’ ‘लुटेरी’, ‘समय’ ‘लुटेरा’,’रस की गागर’ लुटी |

अंग अंग’ की ‘कोमलता’पर हुआ ‘तड़ित का पात ||

अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!३||


 




‘प्रियतम’के आने की खबरें |

उठीं ‘ह्रदय-सर’ में ‘कुछ लहरें’ ||

‘उन लहरों’ में ‘विगत वेदना’ की ‘बिम्बित छबि’ मिटी |

‘अपने’ से भी ‘अपने’ द्वारा हो न् सकी कुछ बात ||

अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!४||





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ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (ख) आग का खेल (४) धधक रहा है कोना कोना ==================



धधक रहा है कोना कोना
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‘रस-प्रवाह’अब लगा ठहरने,
जल-जल पूरी उम्र है काटी |
निष्ठुर बन् कर खेल रही है, ‘आग’ ,‘नाश का खेल घिनौना’||
धधक रहा है कोना कोना ||
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कहीं उदर में ‘जठर अनल’ है | 
कहीं हृदय में ‘काम-अनल’ है ||
करती कहीं ‘वासना’छल है |
‘हिंसा’जलती कहीं प्रबल है ||
लगी ‘प्रकृति’में ‘ज्वाला’भरने |
‘शान्त चिन्तन की परिपाटी’-
‘एक दाह-दुःख’ झेल रही है ||
कितना दुष्कर जगना सोना |
पूज रहा ‘युग’,‘चाँदी-सोना’ ||
निष्ठुर बन् कर खेल रही है,

‘आग’ ,‘नाश का खेल घिनौना’||
धधक रहा है कोना कोना ||१||.


 

झुलसा ‘इच्छाओं का कमल’ है |
तप्त हुआ ‘नयनों का जल’ है ||
दूषित हुआ ‘प्रेम का जल’ है ||
लगी ‘नियति’है हर सीख हरने |
इसने ‘विप्लव-घड़ियाँ’ बाँटीं-
तन पर ‘काँटे’ झेल रही है ||
‘प्रीति’ चाहती है बस रोना |
कहती है ‘अब ज़ुल्म करो ना ||
‘जिन्दगी’ इसको ‘जेल’ हुई है –
इसमें इतने ‘दर्द’ भरो ना ||
 धधक रहा है कोना कोना ||२||.


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ज़लजला(एक भीषण परिवर्तन) (ख)भूचाल भय का (१) !!त्रासदी-त्रासदी- त्रासदी-त्रासदी!!



(सारे चित्र ,गूगल क्गोज से साभार)


हालाँकि भोपाल गैस त्रासदी अब कालातीत हो गयी है,पर त्रासदी तो त्रासदी है ; चाहे 

वह 'महँगाई' की  हो या 'आतंकों' की,'भ्रष्टाचार' की हो या 'शोषण' की, 'नारी-उत्पीडन' 

की या 'भ्रूण-ह्त्या' की, 'दहेज' की हो या 'घूस खोरी' की ! उजागर न सही,चोरी छिपे 

ही सही,हमें वह कचोट तो रही ही है ! अत: मुझे लगता है, यह रचना आज भी सटीक 

है | आप सादर आमंत्रित हैं इस 'यथार्थ-उदघाटन-यज्ञ' में !! 
                    
!!त्रासदी-त्रासदी-
त्रासदी-त्रासदी!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


‘पूरब की भोली भव्यता’ |
‘पश्चिम की विकसित सभ्यता’ ||
उफ़,चोट करारी दे गयी-
हर दिशा को यह ‘होतव्यता’ !!



जिधर ध्यान होगा |
जिधर कान होगा ||
जिधर दृष्टि डालो |
जिधर मुहँ उठा लो ||

‘इस ओर’देखो | ‘उस ओर’देखो ||
‘इधर’त्रासदी है | ‘उधर’त्रासदी है ||
 त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी !!१!!



व्याप रही हर देश में |
ठोस,तरल या गैस में ||
दिशि दिशि में,हर कोण में –
घूम रही हर वेश में ||
न कुछ ज्ञान होगा |
न अनुमान होगा ||
जिधर पग बढ़ा लो |
जिधर खोज पालो ||
रचती है यह नाश का खेल,रखती-
नहीं कोई कोरो कसर त्रासदी है ||
त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी !!२!!



वीर जनों की ‘शक्ति’ में |
धीर जनों की ‘भक्ति’ में ||
‘सज्जन-मन अनमोल’ में-
‘सद्गुण मय अनुरक्ति’ में ||
यही भान होगा |
यह संज्ञान होगा ||
कोई ‘गीत’ गा लो |
कोई ‘धुन’ बजा लो ||
हर इक अदा,हर अंदाज़ में ही-
रखती यों अपना असर त्रासदी है ||
त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी-त्रासदी !!३!!



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