Powered by Blogger.

Followers

देख (एक हकीकत)-द्वितीय पुष्प


 
००००००००००००००००००००
अजब राम की लीला देख |    ०
 नाटक बड़ा रसीला देख ||      ० 
देवताओं के वश में आया -   ० 
है दैत्यों का कबीला देख ||     ० 
०००००००००००००००००००० =================
राम के वेश में रावन है |
आग छिपाये सावन है ||
धोखे से वह गयी छली |
तडफ रही जैसे मछली ||
तार तार हुआ दामन है |
बुझा हुआ इसका मन है ||
सिया के बेबस आँसू से - 
उसका आँचल गीला देख ||१||
  
यह चोरों की कचहरी है |
गावं की, है- न शहरी है ||
भीड़ है बड़ी काजियों की |
धन से बिके पाजियों की ||
न्याय की देवी बहरी है || 
बेडी पहन के ठहरी है ||
कुम्भकर्ण की नींद में डूबा -
न्याय-तंत्र है ढीला देख ||२|
 
रसोई है कंगालों की |  ||
भूखे प्यासे लालों की ||
पीड़ा इनकी कौन सुने-
सुन कर सिर क्यों कौन धुनें ??
बुझते हुए  उजालों की |
टूटी हिम्मत वालों की ||
 दाल न पकी बुझ चूल्हा-
फूटा हुआ पतीला देख ||३||
वर्तमान की बातें कर |
प्यार भरी दिन रातें कर ||
बीती बात विसार के चल |
मत लड़ने  के लिये मचल ||
साबुत टूटे नाते कर |
मत घातें प्रतिघातें कर ||
गड़े हुए शब यहाँ कई-
बस कर खोद न टीला देख ||४||
  
छलिया कपटी बाबा है |
खाता मक्खन -मावा है ||
पहले रसीद कटवा ले |
फिर चाहे जितना खा ले ||
भण्डारा क्या ढाबा है |
अच्छा भला छलावा है ||
दुराचार छिप गये आड़ में -
चोला काला पीला देख ||५||
   
बिकनी में यों नारी है |
बाड़ बिना ज्यों क्यारी है ||
हलवा या कि मलीदा है |
देकर नोट खरीदा है ||
रूप का यह व्यापारी है |
खुल कर लाज उतारी है ||
मुन्नी को बदनाम कर दिया -
शील बेचती शीला देख ||६||
 
प्यार से या मक्कारी से |
या फिर मारामारी से ||
अपराधों का फरिश्ता है |  
जेल से उसका रिश्ता है ||
काम नहीं कुछ यारी से |
|ऐंठा है दमदारी से ||
"प्रसून"कल का गुण्डाबन गया -
नेता छैल छबीला देख ||७||
                                      

Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP