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गज़ल कुञ्ज (गज़ल-संग्रह) (अ) प्रणाम (आराधना गज़ल)- (१)प्रियतम प्रणाम-(क) हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार

 

(१) प्रियतम-प्रणाम
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(क) हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार 
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तुम प्रकाश,तुम हो अंधकार| 
हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार ||
 

निगमागम तुम्हीं अपारगम्य|
पा सकता तुम से कौन पार?? 

 

 प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार||

 
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार||              
   

 निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार||


तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम फिर भी गुणाकार||
  

प्रिय,'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार||

अनिकेत व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
 
है "प्रसून" प्रियतम, शरणागत-
भव-सिंधु से कर दो इसे पार|| 

 
 


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