अपनों से अपना दूर हुआ (एक हकीकत)
>> Thursday, 14 June 2012 –
गीत (अर्द्धहास्य)
किस नशे में इतना चूर हुआ ?
अपनों से अपना दूर हुआ ||
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अपने पन का करते नाटक |
जब जाओ बंद मिले फाटक ||
हम गये समझ कर मीत इन्हें |
खुद कथे सुनाने गीत इन्हें ||
कुत्ते को भडका दौडाया -
मिलना न इन्हें मंजूर हुआ ||
अपनों से अपना दूर हुआ ||१||
जब डूबी नाव चुनावों में |
तब से हैं आप तनावों में ||
अब फोन पे रोज़बुलाते हैं |
कॉफी या चाय पिलाते हैं ||
जब भी हम इनके यहाँ गये -
स्वागत मेरा भरपूर हुआ ||
अपनों से अपना दूर हुआ ||२||
पहले तो बिल्कुल पैदल था |
टूटी दुकान का चैनल था ||
जबसे अच्छी नौकरी मिली |
किस्मत की कुण्ठित कली खिली ||
सब के हक़ का पानी पी कर -
वह किशमिश से अंगूर हुआ ||
अपनों से अपना दूर हुआ ||३||
मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारे में |
देवों के हर चौबारे में ||
वह घूम घूम कर थक हारा |
ज्यों घूमे कोई हरकारा ||
दिल रोशन करने निकला था |
फिर धुँधला कैसे नूर हुआ ??
अपनों से अपना दूर हुआ ||४||
"प्रसून" अपना मुहँ खोलो मत|
बेकार में इतना बोलो मत ||
तुम भी हो दूध के धुले नहीं |
या धर्म-तुला पर तुले नहीं ||
भगवान से डरते रहे सदा -
इतना तो गजब जरूर हुआ ||
अपनों से अपना दूर हुआ ||५ ||