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मेरे संस्मरण (१)मेरे प्रेरणा-स्रोत (क)मेरे ध्यान-केंद्र (मेरे गुरु देव)

ओं श्री गुरुवे नम:
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ओं-
गुरुब्रह्मा, गुरुर्विष्णु:, गुरुर्देवो महेश्वर: |
ग्रुस्साक्षात परं ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरवे नम: ||   
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यह चित्र मात्र एक चित्र न हो कर मरे मानस-पटल पर छपी एक प्रतिमा है जो मरे ध्यान का केंद्र है |  ये विभूति  मेरी प्रेरणा का स्रोत हैं  | मेरे जीवन की डोर इनसे जुड़ी है तो मेरी हर घटना के संचालक हैं ये | मेरे हर दुःख-सुख के
स्वामी हैं ये | मुझे सही मार्ग पर डालने वाले हैं ये | इन की वेश भूषा पर न जायें आप | धर्म-जाति के धरातल से बहुत उठ चुके थे | महा मानव थे ये |
मैं  इनसे  अपने  मिलने-जुड़ने  का  वृत्तान्त  आप के सामने रखूँ, इस से पूर्व मैं, इनसे मिलने से पहले अपने विषय में कहना अधिक उचित समझता
हूँ | मैं यह बताना चाहूँगा कि किस प्रकार मेरी इन से भेंट हुई, कैसे इनसे मेरा
अन्तर्मन का जुड़ाव हो गया !
           
(आगे के प्रस्तुतीकरण में )

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सामयिकी(परिवार-दिवस)






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(क) हाइकू नुमा क्षणिकायें |

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(१)

परिवार-दिवस-

आओ हम सब मनायें !

परिवार को सुखी बनायें !!

(२)
सुखी परिवार |

आज का ‘बड़ा’ नहीं |

‘छोटा परिवार’ ||




(३)

आपस में प्रेम |

यानी परिवार की-

कुशल-क्षेम |

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(ख) क्षणिकायें |

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(१)

दिल छोटा है तो-

‘मियाँ-बीवी-बच्चे’ हैं ‘परिवार’ |

दिल कुछ बड़ा है-

‘ बस्ती-मोहल्ला-नगर’ है परिवार ||

दिल और बड़ा है-

‘इलाका-प्रान्त’ को मानें परिवार ||

दिल बहुत बड़ा है-

‘देश-महाद्वीप’ है परिवार ||

और यदि-

दिल आसमान सा है विशाल |

हम हैं मानते खुद को ‘ईश्वर का लाल’ ||

तो सारी वसुधा है परिवार !!

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(२)
‘हम’ बड़े, बड़े और बड़े होते जायें |

अपना परिवार ‘बड़ा’ बनायें |

‘आकार’ में  नहीं |

‘संख्या’ में नहीं ||

बड़ा बनायें |

‘नीयत’ को न बनायें ‘खोटा’ |

पारिवार को करें सीमित यानी छोटा ||

‘छोटा परिवार-सुखी परिवार’ |

ताकि घटे ‘धरती मैया का भार’ ||


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सामयिकी --मातृ-दिवस |


    कल  नेटवर्क की समस्या  हल न्होंने के कारण आज 'मातृ दिवस'  हेतु प्रस्तुत हूँ !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

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नारी के  मन  से  हट जाये, यदि ‘तनाव का भार |

‘मातृ-दिवस’  का  पर्व  मनाये,  तब  सारा संसार ||

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रोकें  अपहरणों को,  रोकें  ‘लाज  की होती  लूट’ |

‘दरिन्दगी’ को दें मत, अब हम और तनिक भी छूट ||



‘बलात्कारी पशुओं’  को  हम  दें  मिल  कर के मार |

‘मातृ-दिवस’  का  पर्व  मनाये,  तब  सारा संसार ||१||


भोली   कन्यायें   हैं  ‘जगदम्बा’  का  सचमुच   रूप |

इन  में  ‘वत्सलता-ममता’  होंती   है   परम  अनूप  ||

कन्याओं पर  पड़े कहीं  मत, ‘घृणित  मौत  की मार ‘ |

‘मातृ-दिवस’  का  पर्व  मनाये,  तब  सारा संसार ||२||


नारी   में   है  सरस्वती – लक्ष्मी - दुर्गा  का   ‘अंश’ |

तथा  उदर   में   यही  पालती   और  पोषती  ‘वंश’ ||


हम   समझें   कि  यही  ढालती,  ‘मानवता - आकार’ |

‘मातृ-दिवस’  का  पर्व  मनाये,  तब  सारा संसार ||३||







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