मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से (१)विगत यादों की लम्बी डोर |
>> Friday, 5 October 2012 –
गीत(प्रतीक-गीत)
इस लघु मुक्तक काव्य की 'वन्दना' के उपरान्त यह पहला खण्ड,कल्पना-
यथार्थ का संगम है | इस रचना में प्रतीकों के माध्यम से पूरे विश्व में
विचित्र परिवर्तन की और संकेत कियागया है | इतिहास की बहुत अच्छी
बातों को,भारत की अच्छी बातों पर आधुनिकता की मैली धुल डाल कर न
तो विदेशी अच्छी बातों को अपना पा रहे हैं,अपितु उनके 'उच्छ्रंखल रूप'
को ही अपना रहे हैं | अपने दकियानूसी अवशेषों से अलग न होकर, धीरे
धीरे हम पुरानी 'महानताओं' को छोडते जा रहे हैं | इस खण्ड में यही
आशय है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
विगत यादों की लम्बी डोर |
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‘विगत यादों’ की लम्बी डोर |
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‘विगत यादों’ की लम्बी डोर |
‘कल्पना’ के हाथों में छोर ||
‘उड़ चली’,’चिंतन की है पतंग’ |
‘शान्ति’ की हुयी ‘नींद’ है ‘भंग’||
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‘सूर्य’ तो चला ‘तिमिर के देश’,’क्रान्ति की लाली’ है ‘अवशिष्ट’ |
लिखा जिसमें ‘रक्तिम इतिहास’,’काल ने ‘पलटा है’,’वह पृष्ठ” ||
‘त्राहि’ का ‘उठा’ चादुर्दिक ‘शोर’|
‘मनुजता’ गयी आज किस ओर ??
‘प्यार’ का ‘दुखा’ .अंग-प्रत्यंग’ |
छिड़ गयी,’घृणा-वैर की जंग’ ||
‘शान्ति’ की हुयी ‘नींद’ है ‘भंग’ ||१||
‘बादलों’ में ‘पानी’ के साथ,’तड़ित’ की ‘जलती’ ‘भीषण आग’ |
‘पसारे’,’आशाओं के पंख’,लिये ‘मन’ में ‘स्वप्निल अनुराग’ ||
‘झुलस जाते’,‘वन-मन के मोर’|
‘भाग्य’ पर चलता किसका ‘जोर’ ||
‘उछलते अल्हड़’ ‘जले’ ‘कुरंग’ |
‘नियति’ के बड़े ‘निराले ढंग’ ||
‘शान्ति’ की हुयी ‘नींद’ है ‘भंग’ ||२||
‘देवता के लोहू’ से ‘रंगे’,’पहन कर’ ‘वस्त्र’ ‘लिये संन्यास’ |
‘बगल’ में ले ‘छल’ की ‘मृग-क्षाल’,’घूमता गलियों में ‘विशवास’ ||
मचाते फिरते कितना शोर !
‘पाप’ से अंजी’ ‘नयन की कोर’ ||
‘वासना-रति’ को लेकर संग |
‘नाचता’,’नंगा नृत्य’,’अनंग ||
‘शान्ति’ की हुयी ‘नींद’ है ‘भंग’ ||३||
‘चाँदनी’ के ‘यौवन’ पर पड़ी, ‘सघन घन’ की ‘मटमैली दृष्टि’ |
‘आसुओं’ से ‘धोने’‘,अभिशाप’,’रात भर’ हुई ‘अनवरत वृष्टि’ ||
चढीं ‘धूमिल परतें’ हर और और |
किया ‘कोहरे’ ने ‘गँदला’ ‘भोर ||
कहाँ हम जाएँ ‘मीत’ के संग |
‘चढ़ाने’ ‘मधुर प्रीति के रंग’ ||
शान्ति’ की हुयी ‘नींद’ है ‘भंग’ ||४||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
‘चाँदनी’ के ‘यौवन’ पर पड़ी, ‘सघन घन’ की ‘मटमैली दृष्टि’ |
‘आसुओं’ से ‘धोने’‘,अभिशाप’,’रात भर’ हुई ‘अनवरत वृष्टि’ ||
सभी मुक्तक बहुत सुन्दर,,, भाव पूर्ण...शुभ कामनाएं