मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (ग)मीनार (१) प्रगति का घट
>> Saturday, 13 October 2012 –
गीत (यथार्थ गीत)
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‘प्रगति
का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता |
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छल रहा है
हमें कितना ‘स्वर्ण-सम्मोहन’|
मुक्त हाथों से किया ‘अधिकार का दोहन’
||
भूल कर,’कर्त्तव्य की भावों भरी गीता’ ||
‘प्रगति
का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता ||१||
‘लोभ
की दीवार में हैं, ‘स्वार्थ की ईंटें’ |
‘भवन’
में जो रह रहे हैं, क्यों न सिर पीटें ||
इस
तरह’आज़ाद भारत’ का समय बीता ||
‘प्रगति
का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता ||२||
‘आज
का गणतन्त्र’ कितना बन गया ‘धन-तन्त्र’ ||
कई नेताओं
के घर में, है कहाँ ‘जन तन्त्र’ ??
‘मानवी
मन्त्रों’ से मन्त्री दूर है जीता ||
‘प्रगति
का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता ||३||
रोटियों की जगह खाते,’चुनावी सौगन्ध’
|
ठग रहे हैं देश को, ये ‘चुनावी
अनुबन्ध’ ||
‘आदमी’
ही ‘आदमी’ का है ‘लहू’ पीता ||
‘प्रगति
का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता ||४||
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वाह...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति