मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(३) गुरु-वन्दना (ज्ञान,बिना गुरु, कभी न होता |) ==========================
>> Wednesday, 3 October 2012 –
गीत (कीर्त्तन-गीत )
ज्ञान,बिना गुरु, कभी न होता |
++++++ ========++++++
ज्ञान,बिना गुरु कभी न होता,न है ज्ञान-बिन, प्रेम |
बिना प्रेम के कहीं जगत में,नहीं किसी की क्षेम ||१||
बिना प्रेम के शान्ति नहीं है,बिना शान्ति न ध्यान |
बिना ध्यान धारणा अधूरी,आराधन निष्प्राण ||२||
बिन आराधन, मन के दर्पण की न छंटेगी धुन्ध |
बिना स्वच्छ मन, इस जीवन में व्याप्त रहता द्वन्द ||३||
और द्वन्द से,झील चित्त की,मैली है पारान्ध |
जिससे धुँधले हो जाते हैं,प्रभु-प्रेम-अनुबन्ध ||४||
==========================