प्रतीकों में देश के घुटन भरे माहौल के साथ पर्यावरण
आदि के विद्रूप और मानसिक कुण्ठाओं की ओर संकेत
है | ( सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
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‘रिश्तों’ को ‘पैसे’ से माप लिया है |
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||
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हैं ‘कलियों’
से ‘भँवरे’ बिछुडने लगे |
‘तितलियों’
के ‘पंख’ अब उजड़ने लगे ||
‘गीत’
हुये सूने |
औ
‘नृत्य’ हुये सूने-
‘प्यार
भरे सारे ही कृत्य’ हुये सूने ||
‘मधुवन’ ने कौन सा यह ‘पाप’ किया है ?
‘पतझर’ ने कौन सा ‘अभिशाप’ दिया है ||
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||१||
हैं
‘प्रेम के घरौंदे’ सुलगने लगे |
‘बारूदी
नाते’ हैं पनपने लगे ||
‘वेश’
हुये सूने |
औ
‘केश’ हुये सूने ||
झुलस
झुलस ‘रूप के परिवेश’ हुये सूने ||
‘अन्तर ही अन्तर’ वह ‘ताप’ पिया है |
‘धुएँ’ ने ‘कुचित्र’, ‘मन’ पे छाप दिया है ||
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||२||
‘पिक’,’मैना’,’तोते’
‘मूक’ होने लगे |
‘उदर
में पली’ जो ‘भूख’ ढोने लगे ||
‘हास’
हुये सूने |
‘परिहास’
हुये सूने ||
‘मधुरिम
मिलन’ के ‘उल्लास’ हुये सूने ||
‘भय के बादलों’ ने इन्हें ढाँप लिया है ||
‘खूनी आतंक’ ने ‘सन्ताप’ दिया है ||
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||३||
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