मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से((५) झाँक के नीचे,‘झाँकी’ देख ! (ब्याजोक्ति)
>> Wednesday, 10 October 2012 –
गीत(झाँकी-गीत)
कितनी विसंगतियाँ हैं,संसार में !सहन नहीं होता नागफनी का घना
जंगल | फिर भी हर देश महान है | 'जो है, वह ठीक है,हमें क्या !' के३ सूत्र
पर चल रहा है संसार | विचार-परिवर्तन साहित्यकार कर सकता है |
( सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत )
(५) झाँक के नीचे,‘झाँकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!
प्यारे प्यारे बाग मनोहर |
‘क़ुदरत’ की ‘बेदाग़ धरोहर’ ||
और कहीं पर निर्मल जल के-
गहरे-उथले कई सरोवर ||
‘उनकी काया’ छू कर महकी-
पवन सुहानी आती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!१!!
‘भँवरों की टोली’ का गुन्जन |
विविध पंछियों का ‘कल-कूजन’ ||
‘मिली जुली आवाज़ों में’ है-
‘शहनायी’ से गूँजे ‘उपवन’ ||
अरे,अचानक कोयल चहकी-
‘मस्ती में मदमाती’ देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के, नीचे ‘झाँकी’ देख !!२!!
हमें अचानक देता धोखा ||
लेता बड़ी ‘अरुचिकर साँसें’-
घुटता ‘दम अपना,’ ‘अपनों’ का ||
हो कर ‘मैली’,‘पवन’ है ‘बहकी’-
हमको नहीं सुहाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के’ नीचे ‘झाँकी’ देख !!३!!
बदला बहुत ‘रूप’ ‘अवनी’ का |
रहा नहीं है वह अब ‘नीका’ ||
धूल उड़ रही मैली मैली-
उठता हुआ धुआँ चिमनी का ||
‘परिवर्तन की आग’ में ‘दहकी’-
‘कोई दिशा’ न भाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के, नीचे ‘झाँकी’ देख !!४!!
‘हास प्रकृति का’ किया है फीका ||
‘धूल के गुब्बारों’ से गुज़री-
‘मैला’ हो ज्यों ‘रूप परी का’ ||
‘फ़ीकी’ है ‘मुस्कान सुबह की’-
‘शाम’ न ‘रंग जमाती’ देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के’ नीचे ‘झाँकी’ देख !!५!!
‘विकास की पहँचान बन गये ||
बाग बगीचे सभी कट गये-
कई सूख बेजान बन गये ||
अब न कहीं भी ‘प्यारी सब की’-
वह कोयलिया गाती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!६!!
वह कूड़े का ढेर पड़ा है |
‘इस’ के,’उस’ के द्वार पड़ा है ||
भिनक रही हैं खूब मक्खियाँ-
देख के, होता खेद बड़ा है ||
ढेर पे,कुत्ते के संग,सबकी-
मैया गैया खाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!७!!
‘पाप’ का एक ‘जूनून’ देखो !
‘मानवता’ का ‘खून’ देखो !!
किसी ‘कुँवारे गर्भ’ से उपजा-
मृत ‘नवजात “प्रसून”’ देखो!!
दया हीन थी जननी उसकी-
बात यह हमें रुलाती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!८!!
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जंगल | फिर भी हर देश महान है | 'जो है, वह ठीक है,हमें क्या !' के३ सूत्र
पर चल रहा है संसार | विचार-परिवर्तन साहित्यकार कर सकता है |
( सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत )
(५) झाँक के नीचे,‘झाँकी’ देख !
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खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!
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प्यारे प्यारे बाग मनोहर |
‘क़ुदरत’ की ‘बेदाग़ धरोहर’ ||
और कहीं पर निर्मल जल के-
गहरे-उथले कई सरोवर ||
‘उनकी काया’ छू कर महकी-
पवन सुहानी आती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!१!!
‘भँवरों की टोली’ का गुन्जन |
विविध पंछियों का ‘कल-कूजन’ ||
‘मिली जुली आवाज़ों में’ है-
‘शहनायी’ से गूँजे ‘उपवन’ ||
अरे,अचानक कोयल चहकी-
‘मस्ती में मदमाती’ देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के, नीचे ‘झाँकी’ देख !!२!!
कभी कभी वह ‘पवन का झोँका’ |
हमें अचानक देता धोखा ||
लेता बड़ी ‘अरुचिकर साँसें’-
घुटता ‘दम अपना,’ ‘अपनों’ का ||
हो कर ‘मैली’,‘पवन’ है ‘बहकी’-
हमको नहीं सुहाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के’ नीचे ‘झाँकी’ देख !!३!!
बदला बहुत ‘रूप’ ‘अवनी’ का |
रहा नहीं है वह अब ‘नीका’ ||
धूल उड़ रही मैली मैली-
उठता हुआ धुआँ चिमनी का ||
‘परिवर्तन की आग’ में ‘दहकी’-
‘कोई दिशा’ न भाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के, नीचे ‘झाँकी’ देख !!४!!
यह
‘विकास’ का ‘अजब तरीका’ |
‘हास प्रकृति का’ किया है फीका ||
‘धूल के गुब्बारों’ से गुज़री-
‘मैला’ हो ज्यों ‘रूप परी का’ ||
‘फ़ीकी’ है ‘मुस्कान सुबह की’-
‘शाम’ न ‘रंग जमाती’ देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के’ नीचे ‘झाँकी’ देख !!५!!
चारों
ओर मकान बन गये|
‘विकास की पहँचान बन गये ||
बाग बगीचे सभी कट गये-
कई सूख बेजान बन गये ||
अब न कहीं भी ‘प्यारी सब की’-
वह कोयलिया गाती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!६!!
वह कूड़े का ढेर पड़ा है |
‘इस’ के,’उस’ के द्वार पड़ा है ||
भिनक रही हैं खूब मक्खियाँ-
देख के, होता खेद बड़ा है ||
ढेर पे,कुत्ते के संग,सबकी-
मैया गैया खाती देख !!
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!७!!
‘पाप’ का एक ‘जूनून’ देखो !
‘मानवता’ का ‘खून’ देखो !!
किसी ‘कुँवारे गर्भ’ से उपजा-
मृत ‘नवजात “प्रसून”’ देखो!!
दया हीन थी जननी उसकी-
बात यह हमें रुलाती देख !
खिड़की से ‘एकाकी’ देख !
झाँक के नीचे, ‘झाँकी’ देख !!८!!
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