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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) -(क)वन्दना -(२) सरस्वती- वन्दना (! हे माँ देवि सरस्वति !)



 हे माँ देवि सरस्वति !




हे माँ देवि सरस्वति मन के सारे हरो विकार !

‘ज्ञान-हीनता की कीचड़’ से करो पूर्ण उद्धार !!

 

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दो हाथों में वीणा,तीजे में पुस्तक सोहे |

सुन्दर धवल रूप माँ तेरा नयनों को मोहे ||

स्फटिकों की माला चौथे हाथ रहीं तुम धार ||

हे माँ देवि सरस्वति मन के सारे हरो विकार !!१!!



‘भले बुरे का ज्ञान’ हंस सा, करना मुझे सिखा दो !

‘अपनी पुस्तक’ से ‘विद्या की झलक’ तनिक दिखला दो !!

कमल सरीखे कोमल उज्जवल सब में भरो विचार !!

हे माँ देवि सरस्वति मन के सारे हरो विकार !!२!!



'स्फटिकों की मनका ’ से हों भाव हमारे उज्ज्व्ल |

हों दृढ़,अटूट,लेकिन,होवें मर्यादित औ निश्छल ||

वीणा से भर दो माँ, जन जन में ‘पावन झंकार’ !

हे माँ देवि सरस्वति मन के सारे हरो विकार !!३!!




माँ ‘मयूर’ से कह दो बीने,’नाग पाप के’, खाये !

‘सच्चा मार्ग’ किधर है,हम को बोध यही हो जाये ||

हम प्रबुद्ध हों,हम विशुद्ध हों,’दुर्मति’ देना मार !

हे माँ देवि सरस्वति मन के सारे हरो विकार !!४!!



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