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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (च )घट-पर्णी (२)अन बुझी पहेली(एक गाम्भीर व्यंग्य)


(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)



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‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !

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‘आदर्शों का ढोंग’ लिये हैं |

‘धन के मद का नशा’ पिये हैं ||

केवल अपने लिये जिये हैं|

केवल अभिनय ‘सदय’ किये हैं ||

यथार्थ में बस ‘दर्द’ दिये हैं

‘कोमल तन’, ‘पाषाण हिये’ हैं ||

कुछ इनकी ‘पहँचान’ बताओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!१!!


आँखों में छाई ‘लोलुपता’ |

‘चेहरे’ पर ‘नकली भावुकता’ ||

‘अन्तर्मन’ में है ‘कामुकता’ |

नीरस ऐसे जैसे ‘सिकता’* || (*=बालू)

‘ऋण वचनों का’ किया न चुकता ||  

इनका भेद कौन पा सकता !

हमको इनका भेद बताओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!२!!


बाँट रहे हैं ये ‘सम्मोहन’ |

करते हैं ‘जन जन का दोहन’ ||

कहते हैं, ‘हमको है द्रोह न’ |

‘माया से भी हमें मोह न’ ||

किन्तु पूजते केवल ‘कन्चन’ |

इन्हें सदा प्रिय ‘कुर्सी’ या ‘धन’ ||

‘पर्दा इनके मुख का’ हटाओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!३!!


इन से ‘जन्म’ ले रहा ‘शोषण’ |

पी कर ‘रक्त’ कर रहा ‘पोषण’ ||

‘खर’ भी हैं ये, हैं ये ‘दूषण’ |

कुछ ‘रावण’ हैं कुछ ‘खरदूषण’ ||

दे कर ‘लम्बे-चौड़े भाषण’ |

हड़प लिया करते हैं ‘राशन’ ||

इनका ‘असली रूप’ दिखाओ !!  

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!४!!


‘माया धारी’ ये ‘मारीच’ हैं |

मुख से ‘शर्बत’ भीतर ‘कींच’ हैं ||

‘ऊँचे नाम’ हैं, कर्म ‘नीच’ हैं |

‘झूठ’ कहें ‘मुट्ठियाँ भींच’ ये ||

सब को अपनी ओर खींच ये |

छा जाते ‘सभा’ हैं बीच ये ||

‘इनकी चाल’ से हमें बचाओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!५!!


‘मरा नयन का इनके पानी’ |

ज्ञान-हीन’ लहलाते ‘ज्ञानी’ ||

‘कुलिश*भावना’,‘मीठी वाणी |(*=कुल्हाड़ी)

करते हैं ‘अपनी मनमानी’ ||

जीवन भर तो ‘दया’ न् जानी |

बस ‘चुनाव’ में बनते ‘दानी’ ||

इन को अपने मुहँ न लगाओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!६!!


“प्रसून” इन को नहीं सुहाये |

‘खुशबू’ इन को रास न आये ||

पाटे ताल औ वन कटबाये |

‘अपने घर के बाग’ सजाये ||

लूट ‘खज़ाना’, ‘माल’ उड़ायें |

‘जन-गण-मन-स्वामी’ कहलायें ||

इन से ‘अपना माल’ बचाओ !!

‘कौन हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!७!!



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