मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (च )घट-पर्णी (२)अन बुझी पहेली(एक गाम्भीर व्यंग्य)
>> Wednesday, 31 October 2012 –
गीत(पद्धरी-गीत)
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
‘आदर्शों
का ढोंग’ लिये हैं |
‘धन
के मद का नशा’ पिये हैं ||
केवल
अपने लिये जिये हैं|
केवल
अभिनय ‘सदय’ किये हैं ||
यथार्थ
में बस ‘दर्द’ दिये हैं
‘कोमल
तन’, ‘पाषाण हिये’ हैं ||
कुछ
इनकी ‘पहँचान’ बताओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!१!!
आँखों
में छाई ‘लोलुपता’ |
‘चेहरे’
पर ‘नकली भावुकता’ ||
‘अन्तर्मन’
में है ‘कामुकता’ |
नीरस
ऐसे जैसे ‘सिकता’* || (*=बालू)
‘ऋण
वचनों का’ किया न चुकता ||
इनका
भेद कौन पा सकता !
हमको
इनका भेद बताओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!२!!
बाँट रहे हैं ये ‘सम्मोहन’ |
करते हैं ‘जन जन का दोहन’ ||
कहते हैं, ‘हमको है द्रोह न’ |
‘माया से भी हमें मोह न’ ||
किन्तु पूजते केवल ‘कन्चन’ |
इन्हें सदा प्रिय ‘कुर्सी’ या ‘धन’
||
‘पर्दा
इनके मुख का’ हटाओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!३!!
इन से
‘जन्म’ ले रहा ‘शोषण’ |
पी कर
‘रक्त’ कर रहा ‘पोषण’ ||
‘खर’
भी हैं ये, हैं ये ‘दूषण’ |
कुछ ‘रावण’
हैं कुछ ‘खरदूषण’ ||
दे कर
‘लम्बे-चौड़े भाषण’ |
हड़प
लिया करते हैं ‘राशन’ ||
इनका ‘असली
रूप’ दिखाओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!४!!
‘माया
धारी’ ये ‘मारीच’ हैं |
मुख
से ‘शर्बत’ भीतर ‘कींच’ हैं ||
‘ऊँचे
नाम’ हैं, कर्म ‘नीच’ हैं |
‘झूठ’
कहें ‘मुट्ठियाँ भींच’ ये ||
सब को
अपनी ओर खींच ये |
छा
जाते ‘सभा’ हैं बीच ये ||
‘इनकी
चाल’ से हमें बचाओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!५!!
‘मरा नयन का इनके पानी’ |
ज्ञान-हीन’ लहलाते ‘ज्ञानी’ ||
‘कुलिश*भावना’,‘मीठी वाणी |(*=कुल्हाड़ी)
करते हैं ‘अपनी मनमानी’ ||
जीवन भर तो ‘दया’ न् जानी |
बस ‘चुनाव’ में बनते ‘दानी’ ||
इन को
अपने मुहँ न लगाओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!६!!
“प्रसून” इन को नहीं सुहाये |
‘खुशबू’ इन को रास न आये ||
पाटे ताल औ वन कटबाये |
‘अपने घर के बाग’ सजाये ||
लूट ‘खज़ाना’, ‘माल’ उड़ायें |
‘जन-गण-मन-स्वामी’ कहलायें ||
इन से
‘अपना माल’ बचाओ !!
‘कौन
हैं ये ?’, ‘पहेली’ बुझाओ !!७!!
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