मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) -(क)ईश-वन्दना अनन्त प्रभु सत्ता (विराट-रूप) ============
>> Monday, 1 October 2012 –
पद्धरी गीत
अनन्त प्रभु सत्ता
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‘अनादि’ से ‘अनन्त’
तक जिसका विस्तार है |
‘सृष्टि’ को
उठाये जो फिर भी निर्भार है ||
‘अखिल वेद, जिसकी ‘बुद्धि’,जिसका ‘मन’,’व्योम’ है |
‘वनस्पति,पादप,तरु’,जिसके बने ‘रोम’ हैं ||
‘दिन’ जिसका
‘मुख मण्डल’, ‘निशा’ ‘केश राशि’ है |
‘चाँदनी’ है
‘मुकुर-बिम्ब’,’पवन’ जिसकी ‘साँस’ है ||
‘नद, नदियाँ,जलधि,झील’,जिसके है जीवन-रस |
‘खिले हुये सुमनों’में,स्वयम जो रहा है हँस ||
‘सूर्य,चन्द्र,तारों’ में,जिसका है
‘तेज-पुन्ज’ |
जिसकी ‘श्वास-वास’ से,महके ‘वन्-बाग,कुञ्ज’ ||
अन्त हीन उस प्रभु को,कोटि बार है नमन !
गीतों की रचना हेतु, “प्रसून” का है जतन ||