मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से(४) खोल के खिड़की झाँक के देख !
>> Tuesday, 9 October 2012 –
गीत (पद्धरी गीत)
अभिधा प्रधान इस रचना में रोज की बातों का उल्लेख है |आज खिडकी खोलना निरापद नहीं है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
खोल के खिड़की झाँक के देख !
‘हर कूँचे’ में अलग अलग कुछ-
(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
खोल के खिड़की झाँक के देख !
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दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!
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गहरी दृष्टि गड़ा कर देखो –
क्या क्या तुम्हें नज़र आता है |
करो फैसला अपने दिल से-
क्या न सुहाता, क्या भाता है ||
छोरी देख के ‘बाँका छोरा’-
छोरी देख के ‘बाँका छोरा’-
सीटी बजा के कुछ गाता है |
‘छेड़ छाड़’ की ताक में है यह –
फब्ती कसे, न शर्माता है ||
‘अंदर सोई आग’ जगा कर-
‘शीतलता’ तज गरमाता है ||
‘कामदेव
का भगत’-‘पुजारी’-
‘सड़क
छाप हीरो’, दिल फेक ||
दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!१!!
देखो
तो सड़कों पर ‘शोहदा’-
आवारा
हो कर के डोलता |
देने
को ‘सन्देश’ ‘काम’ के-
‘जहाँ
तहाँ’ के बटन खोलता ||
कुछ
अंगों का उच्चारण कर-
कुछ
‘भद्दे अपशब्द’ बोलता ||
‘भोले
मन की शान्त झील’ में-
‘अपने
मन की मैल’ ‘घोलता’ ||
‘मलिन
वासना-द्वार’ कहाँ है-
अपनी
नज़रों से ‘टटोलता’ ||
करता
है ‘अतिक्रमण’ ये ‘पामर’-
लाँघ
के ‘मर्यादा की रेख’ |
दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!२!!
‘चिलम का सुट्टा’
लगा गली में –
घूम रहा वह ‘साधू
बाबा’ |
‘मन सीधे भगवान-दूत
हूँ’-
करता है वह पक्का
दावा ||
भाँग,धतूरा,चरस,सुरा
पी-
खाता अहि वह ‘मक्खन-मावा’
||
कपट-वेश धर,तन्त्र-मन्त्र
का-
करता है वह ‘अजब
दिखावा’ ||
इसके ‘व्यवहारों के
घट में’-
छलका ‘छल’ का ‘घृणित
छलावा’ ||
‘आचरणों
के पाँव’ से ‘लंगड़ा’-
चलता
लगा के ‘धर्म की टेक’ |
दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!३!!
और सामने उस ‘दफ्तर’ में-
होता है देखो ‘घोटाला’ ||
तोल के कम या,’मार के डंडी’-
उस दुकान पर ठगता लाला ||
‘बड़ी घिनौनी साँस’ ले रहा-
थोड़ी दूर पे ‘गन्दा नाला’ ||
‘खोजी कुत्ते’ भीड़ पुलिस की-
रात बैंक का टूटा ताला ||
‘अफवाहों में माहिर गप्पी’-
‘बाँटे’, ’झूठ का गरम मसाला’ ||
दूर ‘अवारा
गधा’ घूमता-
रहा,‘बेसुरी
तान’ में रेंक ||
दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!४!!
‘सफ़ेद कपड़े’ पहन घूमता-
‘राजनीति का एक प्रणेता’ |
‘कुर्सी-दौड़ के खेल’ में ‘माहिर’-
लोग इसे कहते हैं ‘नेता’ ||
‘नज़राना,हफ्ता’ या ‘पगड़ी’-
‘चन्दा, भेंट’-‘सभी कुछ’ लेता ||
बिना ‘स्वार्थ’ के कभी किसी को-
‘दमड़ी एक’ नहीं वह देता ||
छीन के ‘पतवारें’ औरों की-
अपनी ‘जीवन-नौका’ खेता ||
‘धर्म’
के ‘माथे’ पर ‘ठोकी है’-
‘पाप’
की इसने है गुलमेख ||
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!५!!
‘हर कूँचे’ में अलग अलग कुछ-
तरह
तरह के दिखें ‘नज़ारे’ |
कहीं
दीखते ‘खुश किस्मत’ कुछ-
कहीं
कई ‘किस्मत के मारे’ ||
किसी
के हाथ में ‘टूटी साइकिल’-
और कई
के ‘महँगी कारें’ ||
कहीं
दीखती ‘झोपड़ पट्टी’-
और
कहीं ऊंची मीनारें ||
“प्रसून”
महकें ‘किसी बाग’ में-
किसी
में ‘कूकर-शूकर’ सारे ||
कोई ‘दौड़ता’,‘गर्व
में ऐंठा’-
कोइ
चलता ‘लाठी टेक’ ||
दूर
दूर तक ताक के देख !
खोल
के खिड़की झाँक के देख !!६!!
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