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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से(४) खोल के खिड़की झाँक के देख !

अभिधा प्रधान इस रचना में रोज की बातों का उल्लेख है |आज खिडकी खोलना निरापद नहीं  है | 

(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)


खोल के खिड़की झाँक के देख !
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दूर दूर तक ताक के देख !

खोल के खिड़की झाँक के देख !!



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गहरी दृष्टि गड़ा कर देखो –
क्या क्या तुम्हें नज़र आता है |
करो फैसला अपने दिल से-
क्या न सुहाता, क्या भाता है ||
छोरी देख के ‘बाँका छोरा’-
सीटी बजा के कुछ गाता है |   
‘छेड़ छाड़’ की ताक में है यह –
फब्ती कसे, न शर्माता है ||
‘अंदर सोई आग’ जगा कर-
‘शीतलता’ तज गरमाता है ||
‘कामदेव का भगत’-‘पुजारी’-
‘सड़क छाप हीरो’, दिल फेक ||
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!१!!



देखो तो सड़कों पर ‘शोहदा’-
आवारा हो कर के डोलता |
देने को ‘सन्देश’ ‘काम’ के-
‘जहाँ तहाँ’ के बटन खोलता ||
कुछ अंगों का उच्चारण कर-
कुछ ‘भद्दे अपशब्द’ बोलता ||
‘भोले मन की शान्त झील’ में-
‘अपने मन की मैल’ ‘घोलता’ ||
‘मलिन वासना-द्वार’ कहाँ है-
अपनी नज़रों से ‘टटोलता’ ||
करता है ‘अतिक्रमण’ ये ‘पामर’-
लाँघ के ‘मर्यादा की रेख’ |
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!२!!


‘चिलम का सुट्टा’ लगा गली में –
घूम रहा वह ‘साधू बाबा’ |
‘मन सीधे भगवान-दूत हूँ’-
करता है वह पक्का दावा ||
भाँग,धतूरा,चरस,सुरा पी-
खाता अहि वह ‘मक्खन-मावा’ ||
कपट-वेश धर,तन्त्र-मन्त्र का-
करता है वह ‘अजब दिखावा’ ||
इसके ‘व्यवहारों के घट में’-
छलका ‘छल’ का ‘घृणित छलावा’ ||
‘आचरणों के पाँव’ से ‘लंगड़ा’-
चलता लगा के ‘धर्म की टेक’ |
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!३!!




और सामने उस ‘दफ्तर’ में-
होता है देखो ‘घोटाला’ ||
तोल के कम या,’मार के डंडी’-
उस दुकान पर ठगता लाला ||
‘बड़ी घिनौनी साँस’ ले रहा-
थोड़ी दूर पे ‘गन्दा नाला’ ||
‘खोजी कुत्ते’ भीड़ पुलिस की-
रात बैंक का टूटा ताला ||
‘अफवाहों में माहिर गप्पी’-
‘बाँटे’, ’झूठ का गरम मसाला’ ||
दूर ‘अवारा गधा’ घूमता-
रहा,‘बेसुरी तान’ में रेंक ||
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!४!!


‘सफ़ेद कपड़े’ पहन घूमता-
‘राजनीति का एक प्रणेता’ |
‘कुर्सी-दौड़ के खेल’ में ‘माहिर’-
लोग इसे कहते हैं ‘नेता’ ||
‘नज़राना,हफ्ता’ या ‘पगड़ी’-
‘चन्दा, भेंट’-‘सभी कुछ’ लेता ||
बिना ‘स्वार्थ’ के कभी किसी को-
‘दमड़ी एक’ नहीं वह देता ||
छीन के ‘पतवारें’ औरों की-
अपनी ‘जीवन-नौका’ खेता ||
‘धर्म’ के ‘माथे’ पर ‘ठोकी है’-
‘पाप’ की इसने है गुलमेख ||
 दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!५!!


‘हर कूँचे’ में अलग अलग कुछ-
तरह तरह के दिखें ‘नज़ारे’ |
कहीं दीखते ‘खुश किस्मत’ कुछ-
कहीं कई ‘किस्मत के मारे’ ||
किसी के हाथ में ‘टूटी साइकिल’-
और कई के ‘महँगी कारें’ ||
कहीं दीखती ‘झोपड़ पट्टी’-
और कहीं ऊंची मीनारें ||
“प्रसून” महकें ‘किसी बाग’ में-
किसी में ‘कूकर-शूकर’ सारे ||
कोई ‘दौड़ता’,‘गर्व में ऐंठा’-
कोइ चलता ‘लाठी टेक’ ||
दूर दूर तक ताक के देख !
खोल के खिड़की झाँक के देख !!६!!

 




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