मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से(३) 'निज अतीत’ की क़ीमत आँकें |
>> Sunday, 7 October 2012 –
य्ठ्र्थ (यथार्थ-गीत)
जो नज़र आताहै,समाचार-पत्रों में छपता है ,टी.वी.धारावाहिकों में दीखता
है ,हाज़िर है !(सारे चित्र,'गूगल-खोज' से साभार |)
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें
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‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||
कल तक पिता और माता का, आदर करतीं थीं सन्तानें |
अब करती हैं घोर उपेक्षा, असम्मान जाने अनजाने ||
बोंल न भाते हैं अब माँ के ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||१||
अपने घर की,छोड़ के ‘रोटी’, औरों की थाली तकते हैं |
‘उसका माल है मुझसे अच्छा’ कहते हुये नहीं थकते हैं ||
भैया हमको मिला,सो खायें -
मत औरों के घर में ताकें ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||२||
अजब शौक है ‘सुंदरता’ का, फूल छोड़ कर कलियाँ नोचें |
कितना काम घिनौना है यह,न शर्मायें, न कुछ सोचें ||
अपने घर के ताख सजाने,
लाते हैं पंछी की पाँखें ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||३||
“प्रसून” ‘इस’ से बात करें क्या, ’इस’ ने ‘लाज’ बेच कर खा ली |
बेदर्दी से,’प्यार की क्यारी’, ‘घृणा-क्षार’ को डाल सुखा ली ||
शायद फिर ‘सपूत’ बन जायें,
‘कुछ कपूत’ इस ‘धरती माँ’ के ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||४||
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है ,हाज़िर है !(सारे चित्र,'गूगल-खोज' से साभार |)
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें
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‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||
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कल तक पिता और माता का, आदर करतीं थीं सन्तानें |
अब करती हैं घोर उपेक्षा, असम्मान जाने अनजाने ||
पिता के वचन न अच्छे लगते,
बोंल न भाते हैं अब माँ के ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||१||
अपने घर की,छोड़ के ‘रोटी’, औरों की थाली तकते हैं |
‘उसका माल है मुझसे अच्छा’ कहते हुये नहीं थकते हैं ||
भैया हमको मिला,सो खायें -
मत औरों के घर में ताकें ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||२||
अजब शौक है ‘सुंदरता’ का, फूल छोड़ कर कलियाँ नोचें |
कितना काम घिनौना है यह,न शर्मायें, न कुछ सोचें ||
अपने घर के ताख सजाने,
लाते हैं पंछी की पाँखें ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||३||
“प्रसून” ‘इस’ से बात करें क्या, ’इस’ ने ‘लाज’ बेच कर खा ली |
बेदर्दी से,’प्यार की क्यारी’, ‘घृणा-क्षार’ को डाल सुखा ली ||
शायद फिर ‘सपूत’ बन जायें,
‘कुछ कपूत’ इस ‘धरती माँ’ के ||
‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |
‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||४||
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