मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (घ) (छल-का जाल)(३) ‘छल’ का ‘नीर’
>> Saturday, 20 October 2012 –
गीत
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इन
आँखों से छलका ‘नीर’ |
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ ??
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जिसके
‘प्यार’ में ‘वफ़ा’ नहीं है |
जिनका
‘मन’ भी सफ़ा नहीं है ||
‘झूठ’
की ‘तीखी गन्ध’ लिये है-
‘साँसों’
से बह चला ‘समीर’ ||
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!१!!
‘दर्द
कपट का’ सहा है कब से !
जब
मैने से सच कहा है तुम से ||
तुम्हें
चुभ गयी क्यों ‘सच्चाई’-
माथे
पर क्यों पड़ी लकीर ??
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!२!!
किन ‘चोटों’ ने मारी ‘आशा’ ?
‘मोड़ चली मुहँ’, ‘प्यारी आशा’ ||
‘दिल’
में चुभा ‘नुकीला’ कितना-
‘टूटी
आस’ का ‘पैना तीर’ ||
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!३!!
कितना ‘उथला उथला
प्यार’ !
‘सूखा पोखर’-‘छिछला
प्यार’ ||
हर
‘गहराई’,’स्वार्थ’ ने पाटी-
जाना
मत ‘दलदल’ के तीर !!
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!४!!
“प्रसून”
कितने खिले अनमने !
‘कैक्टस’
कितने लगे हैं उगने !!
‘तितली
स्नेह की’ कैसे आये !
मन
कितना हो उठा अधीर !!
‘आँसू’
हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!५!!
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