राजनीति की कानी कुतिया (देवदत्त"प्रसून")
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देखो कितनी गर्म है भय्या चर्चा आज चुनावों की |
सब के मन पर भारी गठरी , स्वार्थ भरे दबावों की ||
पार न लग पायेगा बेड़ा,कैसे तट मिल पायेंगे?
छेदों से हैं चोटिल तलियाँ,नेताओं की नावों की ||
राजनीति की कानी कुतिया घूम रही है गली गली-
आँख मूँद कर देख रही है,जन्नत जीत के ख़्वाबों की ||
तेरे घर में,मेरे घर में सब के घर में आती है-
वोट की थाली सूँघ रही है, मानो थाल पुलावों की ||
"प्रसून"सियासतआज लुटेरी फांस के जाल में ठगतीहै-
बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति....
सब सितार गंज में जमे, काली पीली भीत |
पर प्रसून तो शूल से, नहीं पा रहा जीत ||
सुंदर !