मन मेरा दर्पण हो जाए (अंत:प्रेम की अभिव्यक्ति)
>> Thursday, 5 July 2012 –
गीत (समर्पण-गीत)
यदि तुम को अर्पण हो जाए ||
मन मेरा दर्पण हो जाये ||
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इतना व्यापक प्यार करूँ मैं |
सभी हदों को पार करूँ मैं ||
भेद नहीं हो तुम में, मुझ में ||
ऐसा एकाकार करूँ मैं ||
धरूं ध्यान में रूप तुम्हारा -
तो खुद का दर्शन हो जाये ||१||
अपना हर सुख तेल बना दूं |
अपनी उम्र का दिया जला दूं ||
इच्छा की थाली में भर कर
विश्वासों के सुमन चढा दूं ||
मन मंदिर में 'प्रेम देवता'
का पूरा अर्चन हो जाए ||२||
गीत तुम्हारी याद के गाऊँ |
झूम झूम कर धुन दोहराऊँ ||
कोंई सुने, बहुत अच्छा है-
नहीं तो केवल तुम्हें सुनाऊँ ||
'सुरति' में डूब के झूमूँ नाचूं -
ऐसा भी कीर्त्तन हो जाए ||३||
वेदी कर लूँ माटी का तन |
'काम'-कामना करूँ मैं हवन||
होम करूँ 'चाहत'-समिधायें -
ऐसा पूरा करूँ मैं यजन ||
"प्रसून"त्यागूँ तुम पर सब कुछ-
सफल अखिल जीवन हो जाए ||४||
का पूरा अर्चन हो जाए ||२||
गीत तुम्हारी याद के गाऊँ |
झूम झूम कर धुन दोहराऊँ ||
कोंई सुने, बहुत अच्छा है-
नहीं तो केवल तुम्हें सुनाऊँ ||
'सुरति' में डूब के झूमूँ नाचूं -
ऐसा भी कीर्त्तन हो जाए ||३||
वेदी कर लूँ माटी का तन |
'काम'-कामना करूँ मैं हवन||
होम करूँ 'चाहत'-समिधायें -
ऐसा पूरा करूँ मैं यजन ||
"प्रसून"त्यागूँ तुम पर सब कुछ-
सफल अखिल जीवन हो जाए ||४||