जगता नहीं है आदमी
>> Monday, 9 July 2012 –
गज़ल(शिकायती गज़ल)
भेरियों के स्वर थके,जगता नहीं है आदमी |
प्रेरणा के रंग में रंगता नहीं है आदमी ||
भर गयी कटुता है इसके दिलमे,इसके खून में -
प्यार के मधु स्वरस में पगता नहीं है आदमी ||
बोल कर मीठे वचन कुछ, काट लेता जेब है-
किस गली बाजार में ठगता नहीं है आदमी ||
साफ करने में लगे कितने पयम्बर, पीर, गुरु-
कितना मैला हो गया, मंजता नहीं है आदमी ||
अँधेरे के जाल कितने घने, टूटें किस तरह -
सुबह के सूरज सा क्यों उगता नहीं है आदमी ||
बिखरते रिश्ते,"प्रसून" इस टूटते समाज के -
अब किसी भी डोर से बन्धता नहीं है आदमी ||