गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(य)उकाव-कबूतर-(२)मायूस परिन्दे )
>> Tuesday, 10 July 2012 –
गज़ल (हकीकत की गज़ल)
ये परिन्दे प्यार के कितने हुए मायूस हैं |
उकाबों का डर इन्हें कितना हुआ महसूस है ||
देखने में बाड़, ऊपर से बड़ी मजबूत है |
देखने में बाड़, ऊपर से बड़ी मजबूत है |
हकीक़त में यह बड़ी कमज़ोर, गलती फूस है ||
अपने घर के लोग अपने घर से ही बागी हुये -
अपने घर के लोग अपने घर से ही बागी हुये -
बन गये ये शत्रुओं के घरों के जासूस हैं ||
आ गया कोई जलजला शान्ति के इस सदन में -
आ गया कोई जलजला शान्ति के इस सदन में -
छतों से गिरने लगे कुछ टूटते फ़ानूस हैं ||
खा रहे हैं देश का जी भर के धन औ अन्न ये -
खा रहे हैं देश का जी भर के धन औ अन्न ये -
त्याग करने के लिये पर सभी तो कंजूस हैं ||
"प्रसून" कुचले गये, कलियाँ डाल से टूटीं गिरीं -
"प्रसून" कुचले गये, कलियाँ डाल से टूटीं गिरीं -
बाग में हैं घुसे पापी दरिन्दे मनहूस हैं