Powered by Blogger.

Followers

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(स) प्रेरण -(२)-पर्वत से रहना अटल !

 

तूफानों में हो सबल |


पर्वत से रहना अटल ||
 
चारो ओर से उठ रहीं |


खूनी हिंसा-आंधियां |




डरी हुईं आवादियाँ ||


मानवता को मेटने -


चली हैं देखो वेग से-


कई हवाएँ नाश की ||


हिलने लगी है 'सभ्यता' !


लेकिन तुम रहना अचल !


पर्वत से रहना अटल!!१!! 
  
काल-चक्र का खेल है |


कल था कुछ कुछ आज है |


'दानवता' का राज है || 


फिर भी नाम 'स्वराज' है ||


उपदेशों की आड़ में |


चलते पैने तेग से |


किसी व्याध के पाश सी -


छलने लगी है 'सभ्यता' 


तुम जाना बच कर निकल !


पर्वत से रहना अटल !!२!!
    
नकली मीठी गन्ध से |


महका हुआ "प्रसून" है |


होश से परे जुनून है ||


जिसके सिर पर खून है ||


धोखा हमको मिल रहा |


इसके हर उद्वेग से 


आस मिटी 'मधुमास' की -


पतझर की होतव्यता  


देखो तुम रहना सँभल !


पर्वत से रहना अटल !!३!!
    

Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP