न् जाने क्या हुआ!
>> Tuesday, 31 July 2012 –
गज़लिका
देश को मेरे न जाने क्या हुआ !
सुधारों के यत्न मानों हैं धुआँ ||
उठ रही आवाज़,आती लौट कर –
व्यवस्थायें बन गयीं अन्धा कुआँ ||
चेतनायें सुन्न जैसी हो गयीं –
किस विषैले डंक ने इनको छुआ ??
सियासत के पीर सब मायूस हैं-
नहीं फलती है कोई इनकी दुआ ||
नहीं फलती है कोई इनकी दुआ ||
होड़ आपस की घृणित कितनी“प्रसून”-
कोशिशों का खोलते हैं सब जुआ ||