ज़लज़ला (भीषण परिवर्तन) (क)वन्दना) (१)ईश-वन्दना)-हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!
>> Sunday, 2 September 2012 –
गीत(आर्त-गीत)
ज़लज़ला
(zalzalaa)
(भीषण परिवर्तन)
(zalzalaa)
(भीषण परिवर्तन)
'स्वतंत्रता' का 'धीरज टूटा |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!
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कलि'ने अपना 'बिगुल' बजाया |
'पुण्य-दलन अभियान ' चलाया ||
चली 'वासना' अपनी बाहें 'तृष्णा' की बाहों में डाले |
तुम्हें छोड़ कर कौन जगत में जो इन सब से सृष्टिबचा ले !!
'राजनीति'बन ठन कर निकली |
खेल' खेल कर स्वाँग सा झूठा-
ठठ्ठा मार रही है जी भर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!१!!
हैं 'विनाश' ने नयना खोले |
'धर्म-रत्न 'सब छिपे टटोले ||
लगता इन्हें लूटने आया,'दुराग्रह' को साथ में लाकर |
'मानवता की रत्न-पिटारी' पटकी,खोली, और हिलाकर ||
चुरा लिए हैं 'शील के मोती '|
किया है अपहृत 'प्रेम अनूठा '|
'विश्वासों की माला' ली हर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!२!!
नाच रही है अट्टहास कर |
चहुँ तरफा मैली कुवास भर ||
धसक धसक कर धरा डोलती,लगता कोई ज़लज़ला आया |
'सज्जनता' को पीड़ा पहुँची,न७यनोन नीर छलकता आया ||
'हिंसा','छलना',सहेलियाँ दो,
'मर्यादा' को दिखा अंगूठा |
निकली हैं, लगता मद पी कर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!३!!
चला 'स्वेच्छाचार' रौंदने |
'मानवता' की जड़ें खोदने ||
'करुणा ',' दया 'औ 'ममता ' भागीं,छुपने अपनी 'लाज 'बचाने |
संयम,नियम के बन्धन तोड़े,'मनमानी ' का नाच नचाने ||
ज्यों हिंसक मरखने बैल ने,
तोड़ दिया हो अपना खूँटा |
कुचल रहा हो,सबको जी भर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!४!!