हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ) (१) घनाक्षरी-गीत (हिन्दी अपनाइये)
>> Thursday, 13 September 2012 –
घनाक्षरी-गीत
१४-०९- २०१२
जैसे महासागर में सारी नदियाँ हों मिली |
हिन्दी दिवस
की वधाई !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
की वधाई !
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हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये |
और इस देश को यों स्वर्ग सा बनाइये ||
भाषा है ‘स्वतंत्रता की धुरी’ एक मात्र बन्धु |
भाषा में ही छुपा हुआ ‘भावना का सुधा-सिन्धु’ ||
एक भाषा,एक लिपि अपना के प्रेम से यों –
दूसरों की बात सुन,अपनी सुनाइये ||
हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||१||
भाषायें हैं और भी जो,उनका भी मान करें |
किन्तु उन्हें सीख इकार मत अभिमान करें ||
जो भी आये द्वार उसे आदर दुलार दे के –
‘निज स्वत्व’ बचा उसे गले से लगाइये ||
हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||२||
सभ्यता सभी की सीख पर-गुण मन धरें –
माना कि विकास करें,और ज्ञान-धन भरें ||
किन्तु निज संस्कृति, वाणी, जो विरासत में-
मिली इसे छोड़िये न ‘प्राण’ से बचाइये ||
हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||३||
‘एकता’,‘अनेकता’ में,माना मेरे देश में है |
कोई बात नहीं,माना भेद भूषा वेश में है ||
समझें जो बात लोग,‘गूँगे और बहरे’ न हों-
इस लिये हिन्दी भाषा सरल बनाइये ||
हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||४||
जैसे महासागर में सारी नदियाँ हों मिली |
भिन्न भिन्न फूलों से या सारी बगिया हो खिली ||
वैसे सारी भाषाओं के शब्द मेरी हिन्दी में हैं-
इस लिये हिन्दी निज ‘वाणी’ में बसाइये ||
हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||५||
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