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ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य (क) वन्दना- (2)मातृ-वन्दना वत्सलता की मूर्तिहो जननी !! (सरस्वती वन्दना)









  मातृ-वन्दना
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 !! वत्सलता की          
  मूर्तिहो जननी !!
    (सरस्वती वन्दना)


 ‘वत्सलता’कीमूर्तिहोजननी,
 माताआँचल’लहराओ !
 मेटो तृष्णा-ताप जगत का,
 मन में तोषक छंद भरो !!


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 होठों पर ‘प्रहसन की रेखा‘,मन में 'ज्वालामुखी ’जला|
 ‘ज्वाल’नहीं,’धुआँ’ नहीं है,कितना हो कर दुखी जला!!
 देकर तुम ‘अनुराग’ सभी को,’सरस राग’से सरसाओ!!
 सुलगी‘दहकी अनल’बुझा कर,इसका‘विप्लव’शांत करो!!

 मेटो तृष्णा-ताप जगत का,
 मन में तोषक छन्द भरो !!१!!

 

 भीतर ‘नाग-हलाहल विषधर’ऊपर कितना हरा भरा !
 ऐसे हर‘मधुवन-कानन’से,सजी है माता अखिल धरा!!
 माता विषधर खाने वाले,निज मयूर पर तुम आओ !
 ढूँढ ढूँढ कर उसे चुगाओ,इन ‘नागों’ का अंत करो !!

 मेटो तृष्णा-ताप जगत का,
 मन में तोषक छ्न्द भरो !!२!!

 


 ‘तमो-तोम,अघ,आलस’की,माँ,चारों ओर ‘अँधेरी’ है |
 मिट जायेगा ‘सत्’,’सुज्ञान’माँ,इस में तनिक न देरी है ||
 आलोकित कर ‘ज्ञान का दीपक’,बुद्धि सभी की चमकाओ !
 मारो अम्ब ‘अघ-असुर’इसकी चाल घिनौनी बन्द करो !!

 मेटो तृष्णा-ताप जगत का, 
 मन में तोषक छन्द भरो !!३!!

 

 ‘विद्या,कला,गीत’बिकते हैं,कवि,गायक पूजक धन के|
 कलाकार कुछ छली,प्रपंची,कितने मैले मन इनके ||
 प्रेम के मानसरोवर’में माँ,इनके ‘मानस’नहलाओ |
 निखरें चित्त,विकार-रहित हों,ऐसा कोई,प्रबन्ध करो!!

 मेटो तृष्णा-ताप जगत का,
 मन में तोषक छन्द भरो !!४!!

  






   

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