शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(र)-चलो बचाएं देश को !! (रूपक-गीत) (३) समाधान (!! आओ बचा लें देश को !!)
>> Thursday, 20 September 2012 –
गीत (संबोधन-गीत)
चित्र 'गूगल-खोज' से साभार
!! आओ
बचा
लें देश को !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
आओ बचा लें देश को !
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‘धरती की दुर्दम प्यास’ ने |
‘सत्ता मिले’ इस आस ने ||
‘हर एकता’ को छल लिया-
‘बिखरे हुये विशवास’ने ||
मत-भेद इतने बढ़ गये-
‘दल-दल’ में यह फँसने लगा |
आओ निकालें देश को !
आओ बचा लें देश को !!१!!
हर सुख बढ़ा,राहत बढ़ी |
फिर और भी चाहत बढ़ी ||
‘पथ’बहुत ‘चिकने’ हो गये –
‘सुविधा की चिकनाहट’ बढ़ी ||
गति दे गयी हम को दगा-
यह लडखडा गिरने लगा |
आओ सँभालें देश को !
आओ बचा लें देश को !!२!!
‘निष्ठा’ पर हुये ‘प्रहार ने |
‘लालच के कुटिल कुठार’ ने ||
तोड़ा है कैसा संगठन !
देखो तो ‘भ्रष्टाचार’ ने !!
इस ‘प्रेम-मन्दिर’ में कोई-
‘कुबेर’ आ बसने लगा-
इससे हटा लें देश को |
आओ बचा लें देश को !!३!!
हमको यही अब खेद है |
भावों में सबके भेद है ||
खेला विदेशों ने इसे –
समझा इसे तो ‘गेंद’ है ||
‘गन्दी सियासत’ का कोई-
यह खेल अब खलने लगा-
अब मत उछालें देश को |
आओ बचा लें देश को !!४!!
कितने ‘अँधेरे’ बढ़ गये !
‘कुण्ठा के घेरे’ बढ़ गये ||
‘क्यारी’ में हर “प्रसून” की-
‘काँटे घनेरे’ बढ़ गये ||
‘काला अँधेरा’ नाग सा-
‘उम्मीद’ को डसने लगा |
दें कुछ उजाले देश को |
आओ बचा लें देश को !!५!!
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