दुनिया भूल भुलैया रे! (यथार्थ-गीत)
>> Wednesday, 19 September 2012 –
रूपक-गीत (समूह-गान)
(सारे चित्र 'गूगल खोज' से मूल छायाकारों के उत्तर-दायित्व पर उन्हें धन्यवाद देते हुये उद्धृत)
दुनियाँ भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मैले कलंक का डर |
फैले आतंक का डर ||
चुपके से कट न् ले -
बिच्छू के डंक का डर ||
हुआ पड़ोसी है छाती पर -
कैसे मूँग दलैया रे !
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!१!!
लोभी रखवाले हुये |
भेदी घर वाले हुये ||
मन के पिंजड़े में तोते-
लालच के पाले हुये ||
पैसे लेकर बिके देश के -
'नीति के खेल खिलैया ' रे ||
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!२!!
दुखी बगिया मन भावन |
'फूल-भँवरों ' की अनबन ||
बरसते 'कपट के बादल '-
हो गया फीका 'सावन ' ||
'प्यार की डोरी ' टूट गयी है -
' झूला ' कौन झुलाये रे ||
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!३!!
पेड़ सारे ही काटे |
सभी ' यक्षों ' ने बाँटे ||
घरों में इनके देखो-
लगीं लकड़ी की हाटें ||
'विकास की मीनार उठाने-
पाटे ताल-तलैया रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!४!!
' परिवर्तन ' की है हरकत |
देवों ने बाँटीं ' नफ़रत ' ||
रूठी है हम से 'क़ुदरत ' |
देख लों इसकी ' फ़ितरत ' ||
बाढ़ के पानी में डूबी है-
' नगरी ' बनी ' तलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!५!!
गलियों में डोले ' गैया ' |
हम सब की ' प्यारी मैया ' ||
कैसे हैं 'बे सुध सोये ' -
' प्यारे कान्हां चरवैया ' ||
ज़हरीले घी-दूध से बोझल-
छींके धरी मलैया रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!६!!
मिल गये ' पाण्डव-कौरव ' |
कर रहे 'ताण्डव रौरव ' ||
' वैर ' की ' भडकी ज्वाला '-
जल रहा ' देश का गौरव ' ||
फैला ' डीज़ल ' जली ' घृणा ' -
क्यों है ' दिया सलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!७!!
' आपस का मेल ' देखो !
' खाने का खेल ' देखो !!
' दुश्मन ' भी एक दूजे -
को रहे झेल देखो !!
साथ बंधे हैं ' राज नीति ' में
'चूहे और बिलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!८!!
सुन अरी ' जनता गोरी ' !
बड़ी तू ' मन की भोरी ' !!
' सियासत के ठग ' तुमको-
ठग गये चोरी चोरी !!
"प्रसून" ऐंठी बड़ी जोर से-
' टूटी तेरी कलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!९!!
दुनियाँ भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मैले कलंक का डर |
फैले आतंक का डर ||
चुपके से कट न् ले -
बिच्छू के डंक का डर ||
हुआ पड़ोसी है छाती पर -
कैसे मूँग दलैया रे !
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!१!!
लोभी रखवाले हुये |
भेदी घर वाले हुये ||
मन के पिंजड़े में तोते-
लालच के पाले हुये ||
पैसे लेकर बिके देश के -
'नीति के खेल खिलैया ' रे ||
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!२!!
दुखी बगिया मन भावन |
'फूल-भँवरों ' की अनबन ||
बरसते 'कपट के बादल '-
हो गया फीका 'सावन ' ||
'प्यार की डोरी ' टूट गयी है -
' झूला ' कौन झुलाये रे ||
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!३!!
पेड़ सारे ही काटे |
सभी ' यक्षों ' ने बाँटे ||
घरों में इनके देखो-
लगीं लकड़ी की हाटें ||
'विकास की मीनार उठाने-
पाटे ताल-तलैया रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!४!!
' परिवर्तन ' की है हरकत |
देवों ने बाँटीं ' नफ़रत ' ||
रूठी है हम से 'क़ुदरत ' |
देख लों इसकी ' फ़ितरत ' ||
बाढ़ के पानी में डूबी है-
' नगरी ' बनी ' तलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!५!!
गलियों में डोले ' गैया ' |
हम सब की ' प्यारी मैया ' ||
कैसे हैं 'बे सुध सोये ' -
' प्यारे कान्हां चरवैया ' ||
ज़हरीले घी-दूध से बोझल-
छींके धरी मलैया रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!६!!
मिल गये ' पाण्डव-कौरव ' |
कर रहे 'ताण्डव रौरव ' ||
' वैर ' की ' भडकी ज्वाला '-
जल रहा ' देश का गौरव ' ||
फैला ' डीज़ल ' जली ' घृणा ' -
क्यों है ' दिया सलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!७!!
' आपस का मेल ' देखो !
' खाने का खेल ' देखो !!
' दुश्मन ' भी एक दूजे -
को रहे झेल देखो !!
साथ बंधे हैं ' राज नीति ' में
'चूहे और बिलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!८!!
सुन अरी ' जनता गोरी ' !
बड़ी तू ' मन की भोरी ' !!
' सियासत के ठग ' तुमको-
ठग गये चोरी चोरी !!
"प्रसून" ऐंठी बड़ी जोर से-
' टूटी तेरी कलैया ' रे !!
दुनिया भूल भुलैया रे !
तू इसमें इठलैया रे !!९!!