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(ज्वालामुखी) (एक गरम जोश काव्य) (क)(वन्दना) (१)ईश-वन्दना-- भगवान टेर सुन लो !!



 
(ज्वालामुखी)
    
 (एक गरम जोश काव्य)
   (क)
  (वन्दना)
     
              
        (१)
   ईश-वन्दना

भगवान टेर सुन लो !!

 

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भगवान टेर सुन लो,यह मनुज कितना है दुखी !

हृदय में फटने को है,'संयम'का प्रभुज्वालामुखी !!

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वदन में 'प्रहसन की आभा ',किन्तु अन्तर तप्त है |

'मौन स्पंदनलिए गतिएक 'हलचल सुप्त है ||

'तुष्टि का आवरण ओढ़ेकिन्तु भीतर भी भरा |

'असाहस का कफ़न ओढ़ेमृत्यु से पहले मरा ||


पी रहा 'विष ', 'सुधा 'कह कर,यों हुआ अनजान सा- 


पल रही 'पीड़ा है मन मेंकह रहा,"मैं हूँ सुखी ' ||

हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!१!! 





हर तरफ 'रौरव 'मचाती,एक धधकी 'आग है |

'हलाहल मुख में लिये,'तृष्णा 'के 'काले नाग हैं ||

'जठर की ज्वाला 'घिनौनी,'शान्ति 'को है लीलती |

क्या तुम्हीं ने दी है स्वामी,'प्रलय 'को कुछ ढील सी ??


चाहता हर कोई है,'केवल अकेले खाऊँ मैं '-


'काल बनकर मेटने जग,जगी 'ज्वाला चौमुखी ' | 

हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!२!! 



'लोभ ',दावानल बना है, 'बाग ,वन् 'को खा गया |

चुगे 'कलियाँ,लता,पादप ',हर 'सुमन 'को खा गया ||

मिट गये 'पीपल औ बरगद ','नीम-छाया लुप्त है |

'प्रगति घातक जो छबीली किन्तु 'माया '-लिप्त है ||



'मृत्यु 'का आव्हान,देखो,सभी मानव कर रहे -



 अल्प-आयु लोग मानों,'काल की है गति रुकी ||

हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!३!!



'विकासी कल-कारखाने ' 'कलुषता 'का वमन कर |

जलधि,सर,सरिता,सरोवर-'स्वच्छता 'का दमन कर ||

उगल कर 'बड़वाग्नि 'मानों 'नाश 'जल में बो रहा 

'रौद्र दानव 'कोई तन का घृणित 'कलि-मल 'धो रहा ||



या कि 'जीवन-रस 'मिटाना,चाहता हो कपट कर - 


हृदय में 'विष 'घोलने,आया हो 'युग का वासुकी ||

हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!४!!




 

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