(ज्वालामुखी) (एक गरम जोश काव्य) (क)(वन्दना) (१)ईश-वन्दना-- भगवान टेर सुन लो !!
>> Tuesday, 4 September 2012 –
गीत(भीषण-:परिवर्तन)
(ज्वालामुखी)
(एक गरम जोश काव्य)
(क)
(वन्दना)
(१)
ईश-वन्दना
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भगवान टेर सुन लो,यह मनुज कितना है दुखी !
हृदय में फटने को है,'संयम'का प्रभु, ज्वालामुखी !!
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वदन में 'प्रहसन की आभा ',किन्तु अन्तर तप्त है |
'मौन स्पंदन' लिए गति, एक 'हलचल ' सुप्त है ||
'तुष्टि ' का आवरण ओढ़े, किन्तु भीतर भी भरा |
'असाहस का कफ़न ' ओढ़े, मृत्यु से पहले मरा ||
पी रहा 'विष ', 'सुधा 'कह कर,यों हुआ अनजान सा-
पल रही 'पीड़ा ' है मन में, कह रहा,"मैं हूँ सुखी ' ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!१!!
हर तरफ 'रौरव 'मचाती,एक धधकी 'आग ' है |
'हलाहल ' मुख में लिये,'तृष्णा 'के 'काले नाग ' हैं ||
'जठर की ज्वाला 'घिनौनी,'शान्ति 'को है लीलती |
क्या तुम्हीं ने दी है स्वामी,'प्रलय 'को कुछ ढील सी ??
चाहता हर कोई है,'केवल अकेले खाऊँ मैं '-
'काल ' बनकर मेटने जग,जगी 'ज्वाला चौमुखी ' |
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!२!!
'लोभ ',दावानल बना है, 'बाग ,वन् 'को खा गया |
चुगे 'कलियाँ,लता,पादप ',हर 'सुमन 'को खा गया ||
मिट गये 'पीपल औ बरगद ','नीम-छाया लुप्त है |
'प्रगति घातक ' जो छबीली किन्तु 'माया '-लिप्त है ||
'मृत्यु 'का आव्हान,देखो,सभी मानव कर रहे -
अल्प-आयु लोग मानों,'काल ' की है गति रुकी ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!३!!
'विकासी कल-कारखाने ' 'कलुषता 'का वमन कर |
जलधि,सर,सरिता,सरोवर-'स्वच्छता 'का दमन कर ||
उगल कर 'बड़वाग्नि 'मानों 'नाश 'जल में बो रहा
'रौद्र दानव 'कोई तन का घृणित 'कलि-मल 'धो रहा ||
या कि 'जीवन-रस 'मिटाना,चाहता हो कपट कर -
हृदय में 'विष 'घोलने,आया हो 'युग का वासुकी ' ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!४!!