हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ) ** (४)** !!फिर भी हिन्दी जिन्दा है!!
>> Sunday, 16 September 2012 –
नव गीत
!!फिर भी हिन्दी जिन्दा है!!
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‘नीति का नाटक’ गन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||
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‘भारी भरकम पापों’ का |
‘कर्मों के सन्तापों’ का ||
सिर पर लदा पुलन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||१||
‘सदाचार के मोती’ का |
‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-
भाव ज़रा सा मन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||२||
ए.सी.और कूलरों में |
‘पाउंड’और ‘डालरों’ में ||
बिका हुआ हर बन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||३||
जगमग जगमग चमक रहा |
युगों युगों से दमक रहा ||
जैसे सूरज-चन्दा है |
ऐसे हिन्दी जिन्दा है ||४||
‘आन’ खो चुका है अपनी |
‘शान’ खो चुका है अपनी ||
‘यह सोने का परिन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||५||
चारों और ‘बज़ारों’ में |
‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में ||
पनपा काला धन्धा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||६||
उलझी ‘मान-विमर्दन’में |
“प्रसून”,‘इसकी गरदन में ||
पड़ा ‘विदेशी फन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||७||
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