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हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ) ** (४)** !!फिर भी हिन्दी जिन्दा है!!



!!फिर भी हिन्दी जिन्दा है!!



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‘नीति का नाटक’ गन्दा है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||

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‘भारी भरकम पापों’ का |

‘कर्मों के सन्तापों’ का ||

सिर पर लदा पुलन्दा है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||१||


 

‘सदाचार के मोती’ का |

‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-

भाव ज़रा सा मन्दा है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||२||


 


ए.सी.और कूलरों में |

‘पाउंड’और ‘डालरों’ में ||

बिका हुआ हर बन्दा है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||३||







जगमग जगमग चमक रहा |

युगों युगों से दमक रहा ||

जैसे सूरज-चन्दा है |

ऐसे हिन्दी जिन्दा है ||४||





‘आन’ खो चुका है अपनी |

‘शान’ खो चुका है अपनी ||

‘यह सोने का परिन्दा’ है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||५||



चारों और ‘बज़ारों’ में |

‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में ||

पनपा काला धन्धा है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||६||





उलझी ‘मान-विमर्दन’में |

“प्रसून”,‘इसकी गरदन में ||

पड़ा ‘विदेशी फन्दा’ है |

फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||७||





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