ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (ख) आग का खेल(३) गरम आग पाइये
>> Tuesday, 11 September 2012 –
गीत(प्रतीक-गीत)
! गरम आग पाइये !
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! बारूदी ढेर पर हमारे निवास !
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आज हम कैसे करें जीवन की आस ?
बारूदी ढेर पर हम,आरे निवास ||
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चाहे हों गाँव के,या शहरी लोग |
‘मीठे कलेवर’ में हैं 'ज़हरी लोग' ||
सबके दोधारी हैं तीखे व्यवहार |
छल रहे हैं हमें सबके विशवास |
बारूदी ढेर पर हमारे निवास ||१||
चारों ओर धुआँ उठा,है पवन गरम |
चैन-अमन से मिले,कहाँ ताज़ा दम !!
सुलग रहा कहीं, कहीं ‘मलिन हुआ’‘प्यार’ |
‘कामना’-‘भावना’ की घुट रही साँस |
बारूदी ढेर पर हमारे निवास ||२||
है हमको दर्द और टीस भरा रंज |
हगक्योंकि ‘दया-भाव’भी हो गए ‘शतरंज ||
‘सान्त्वना के बोल’ आज हुये ‘व्यापार’ |
कहें करुण कथा निज आज किसके पास !
बारूदी ढेर पर हमारे निवास ||३||
हर ओर आदमी के सर चढी ‘मौत’ |
‘डसने’ ‘इंसानियत’ को आगे बढ़ी मौत ||
हम बचाव के लिये,रहे यों पुकार |
किन्तु स्वर दबे ज्यों गले पड़ी फांस |
बारूदी ढेर पर हमारे निवास ||४||
कट रहे 'धरा के केश औ नाखून' |
‘नासमझ इंसान’ का देखिये ‘जुनून’ ||
दे हमें ‘तान भरे मीठे उपहार’ |
‘बांसुरी’ के लिये कहाँ मिले ‘बाँस’ !
बारूदी ढेर पर हमारे निवास ||५||