ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (क)वन्दना (४) राष्ट्र-वन्दना
>> Thursday, 6 September 2012 –
गीत(वन्दना-गीत)
राष्ट्र-वन्दना
(मेरे भारत देश)
! मेरे भारत देश,स्वर्ग से
सुन्दर और सु रूप हो तुम !
शान्त चित्त तुम, अवढर दानी-आगत के सत्कारक हो !
हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!
‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!
सहन शक्ति है असीम शिव सी,जग जाते तो रौद्र महा |
वैरी को भी गले लगाया, उसका अत्याचार सहा ||
पर जब तूमने ‘करवट बदली’,’विप्लव’ हो,’विद्रूप’ हो तुम !
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!२!!
‘ओज-अनल’ को सहेज रखते,’शान्त ज्वालामुखी’ हो तुम !
तुम न कभी हो सत्ता लोलुप,है तुम में अनंत संयम ||
दैत्य जब आक्रामक होते, ‘त्रिदेव के प्रारूप’ हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!३!!
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