Powered by Blogger.

Followers

ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (क)वन्दना (४) राष्ट्र-वन्दना


             
        

राष्ट्र-वन्दना


(मेरे भारत देश)


       ! मेरे भारत देश,स्वर्ग से

   सुन्दर और सु रूप हो तुम !



    
  
  


शान्त चित्त तुम, अवढर दानी-आगत के सत्कारक हो ! 

हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!

‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!

तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!


  
  



सहन शक्ति है असीम शिव सी,जग जाते तो रौद्र महा |

वैरी को भी गले लगाया, उसका अत्याचार सहा ||

पर जब तूमने ‘करवट बदली’,’विप्लव’ हो,’विद्रूप’ हो तुम !

तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!२!!



  


‘ओज-अनल’ को सहेज रखते,’शान्त ज्वालामुखी’ हो तुम !

तुम न कभी हो सत्ता लोलुप,है तुम में अनंत संयम ||


दैत्य जब आक्रामक होते, ‘त्रिदेव के प्रारूप’ हो तुम !!

तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!३!!

 

======================================================================================




Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP